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( २१६ ) प्र० २५६-विक्रिया समुद्घात किसे कहते है ?
उ०-विविध क्रिया करने के लिये मूल शरीर को छोडे बिना आत्म प्रदेशो का बाहर निकलना।
प्र० २५७-मारणान्तिक समुद्घात किसे कहते है ? ।
उ०-जीव मृत्यु के समय तत्काल ही गरीर को नहीं छोडता, किन्तु शरीर मे रहकर ही अन्य जन्म स्थान को स्पर्श करने के लिये आत्म प्रदेशो का बाहर निकतना।
प्र० २५८-तेजस समुद्घात के कितने भेद है ? उ०-दो भेद है-शुभ तेजस, अशुभ तैजस । प्र० २५६-शुभ तेजस समुद्घात किसे कहते है ?
उ.-जगत को रोग या दुर्भिक्ष से दुखी देखकर महामुनि को दया उत्पन्न होने से जगत का दुख दूर करने के लिये, मूल शरीर को छोडे विना ही तपोबल से दाहिने कन्धे मे से पुरुषाकार सफेद पुतला निकलता है और दुःख दूर करके पुन अपने शरीर मे प्रवेश करता है, उसे शुभ तैजस समुद्घात कहते है।
प्र० २६०-अशुभ तैजस समुद्घात किस कहते है ?
उ०-अनिष्ट कारक पदार्थो को देखकर मुनियो के मन मे क्रोध उत्पन्न होने से उनके बाये कन्चे से बिलाव आकार सिन्दूरी रग का पूतला निकलता है । वह जिस पर क्रोध हुआ हो उसका नाश करता है और साथ ही उस मुनि का भी नाश करता है उसे अशुभ तेजस समुद्घात कहते है।
प्र० २६१-आहारक समुद्घात किसे कहते है ?
उ.--छठे गुणस्थानवर्ती, परम ऋद्धिधारी किसी मुनि के तत्व सम्बन्धी गका उत्पन्न होने पर, अपने तपोबल से मूल शीर को छोडे बिना मस्तक में से एक हाथ जितना पुरुषाकार सफेद और शुभ पुतला निकलता है। वह केवली या श्रुत केवली के पास जाता है।