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वस्तु तेऽर्थकृतः ।” निश्चयनय को अपेक्षा ही व्यवहारनय होता है । केवल व्यवहार पक्ष ही मोक्ष मार्ग में नही है ।
प० ४९ - जिन भगवन्तों की वाणी की पद्धति क्या है ? उत्तर - दो नयो के आश्रय से सर्वस्व कहने की पद्धति है । प्र० ५०-नय के कितने भेद है ?
उत्तर- दो भेद है, निश्चयनय और व्यवहारनय । प्र० ५१ - निश्चय व्यवहार का लक्षण क्या है ? उत्तर- (१) यथार्थ का नाम निश्चय हैं । (२) उपचार का नाम व्यवहार है ।
प्र० ५२ यथार्थ का नाम निश्चय और उपचार का नाम व्यवहार को किस-किस प्रकार जानना चाहिये ?
उत्तर- (१) जहाँ अखण्ड त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव को यथार्थ का नाम निश्चय कहा हो, वहाँ उसकी अपेक्षा निर्मल पर्याय को उपचार का नाम व्यवहार कहा जाता है । ( २ ) जहां निर्मल शुद्ध परिणति को यथार्थ का नाम निश्चय कहा हो, वहाँ उसकी अपेक्षा भूमिका अनुसार शुभभावो को उपचार का नाम व्यवहार कहा जाता है । (३) जहाँ जीव के विकारी भावो को यथार्थ का नाम निश्चय कहा हो, वहाँ उसकी अपेक्षा द्रव्यकर्म-नोकर्म को उपचार का नाम व्यवहार कहा जाता है ।
प्र० ५३ अखण्ड त्रिकाली ज्ञायक को यथार्थ का नाम निश्चय क्यों कहा है ?
उत्तर - एक मात्र आश्रय करने योग्य की अपेक्षा से अखण्ड त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव को यथार्थ का नाम निश्चय कहा है। क्योकि इसी के आश्रय से ही धर्म की प्राप्ति वृद्धि और पूर्णता होती है । प्र० ५४ निर्मल शुद्ध परिणति को यथार्थ का नाम निश्चय क्यों
कहा है
उत्तर - प्रगट करने योग्य की अपेक्षा से निर्मल शुद्ध परिणति को
?