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( 3 ) जा सकता है कि-यह मेरा सोने का हार है, परन्तु ऐसा है नहीं। ___ प्रश्न ७-पुद्गल बन्ध को जानने-मानने से क्या लाभ रहा ?
उत्तर-[अ]. विश्व मे जितने समान जातीय स्कन्ध द्रष्टिगोचर होते है, उन सब मे पुद्गल बन्ध के अनुसार ज्ञान-श्रद्धान वर्तेगा तो पुद्गल स्कन्धो मे जो अनादिकाल से द्रव्यरूप बुद्धि वर्त रही है, उसका अभाव होकर धर्म की प्राप्ति करके क्रम से मोक्ष लक्ष्मी का नाथ बन जावेगा। आ] अज्ञानी अनादिकाल से पुद्गल बन्ध मे अपनेपने की मान्यता से पागल हो रहा था-उसका रहस्य समझ मे आ जावेगा।
प्रश्न ८-मै पं० कैलाश चन्द्र जैन हूं-यह कौन सा बन्ध है और इसमे बन्ध की चार बातें लगाकर समझाइये ?
उत्तर-मै प० कैलाश चन्द्र जैन हूँ यह उभय वन्ध है। (१) मै । प० कै लागचन्द्र जैन हूँ यह सम्वन्ध विशेष है। (२) एक मुझ आत्मा और कैलाश चन्द्र मे अनन्त पुद्गल परमाणु-यह अनेक वस्तुये हुई। (३) मै प० कैलाश चन्द्र जैन हैं-ऐसा वाही रूप से देखने मे तथ बोलने मे आता है। (४) [अमै ज्ञान-दर्शन उपयोगमयी जीवत हूँ, कैलाश चन्द्र सर्वथा अजीव तत्व है। [आ अनादिकाल से' एक समय करके कैलाश चन्द्र अजीव तत्व मे अपनेपने की म' से अनन्त बार निगोद गया और अपरिमित दुख सहन किये। वर्तमान मे सच्चे देव-गुरु-धर्म का सयोग मिला, उन्होने वर तू तो ज्ञान-दर्शन उपयोगमयी जीवतत्व है। कैलागर अजीव तत्व है। अजीवतत्व से तेरा किसी भी प्रकार क अपेक्षा कोई सम्बन्ध नही है। [ई ऐसा सुनते-जान आस्रव वन्ध भागने शुरू हो जायेगे और सवर निर्जरा व क्रम से मोक्ष लक्ष्मी का नाथ कहलायेगा।'