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अनेक तरह की विभूति भोगता है और अनेक प्रकार के स्वर्ण के महल, मकानादि व वागादिक बनाता है और राग, रग, सुगन्ध आदि से युक्त क्रीडा करता हुआ अत्यन्त सुख भोगता है ।
प्र० ३०- भेदविज्ञानी पुरुष कैसा है ?
उत्तर - रत्नो के लोभी उक्त पुरुष की तरह भेदविज्ञानी पुरुष है । वह शरीर के लिये मयमादि गुणो मे अतिचार नही लगाता और ऐसा विचार करता है कि "सयमादि गुण रहेगे तो मै विदेह क्षेत्र मे देव बनकर जाऊगा और सीमधर स्वामी आदि बीस तीर्थकरो और अनेक केवलियो एव मुनियों के दर्शन करुगा और अनेक जन्मो के सचित पाप नष्ट करु गा और मनुष्य पर्याय मे अनेक प्रकार के सयम धारणा करुगा । मै श्री तीर्थकर केवली भगवान के चरण कमल मे क्षायिक सम्यक्त्व की साधना करुगा और अनेक प्रकार के मनवाछित प्रश्न कर तत्त्वो का यथार्थ स्वरुप जानू गा । राग-द्वेप ससार के कारण है मै उनका शीघ्रतापूर्वक आमूल नाश करुगा । मै श्री परम दयाल, आनन्दमय केवल लक्ष्मी सयुक्त श्री जिनेन्द्र भगवान की छविका दर्शन रूपी अमृत का निरन्तर लाभ लेऊगा । तत्पश्चात् मै शुद्धाचरण द्वारा कर्म-कलक को धोने का प्रयत्न करू गा । मै पवित्र होकर श्री तीर्थकर देव के निकट दीक्षा धारण करू गा । तत्पश्चात् मैं नाना प्रकार के दुर्द्धर तपश्चरण करू गा और तत्परिणाम स्वरूप मेरा शुद्धोपयोग अत्यन्त निर्मल होगा और मै अपने स्वरूप मे लीन होऊगा । मै उसके बाद क्षपकश्रेणी के सन्मुख होऊगा और कर्मरूपी शत्रुओसे युद्धकर जन्म-जन्म के कर्मो का उन्मूलन करूगा और केवलज्ञान प्रगट करूगा और मुझे एक समय मे समस्त लोकालोक के त्रिकालीन चगचर पदार्थ दृष्टिगोचर हो जायेगे । तत्पश्चात मेरा यह स्वभाव शारवत् रहेगा । मै ऐसी केवलज्ञान लक्ष्मी का स्वामी हूँ तव इस गरीर से कैसे ममत्त्व करू ?
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प्र० ३१ - सम्यक्ज्ञानी पुरुष क्या विचार करता है ?
उत्तर - मुझे दोनो ही तरह आनन्द है - शरीर रहेगा तो फिर