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( १३६ ) उत्पन्न होते जानकर भी उस विषय-सामग्री से अरुचि नहीं होती, जिस प्रकार स्पर्शन इन्द्रिय की प्रबल इच्छा के वश होकर हाथी गड्डे मे गिरता है, रसनाइन्द्रिय के वश मे होकर मछली जाल मे फस मरती है,घ्राण इन्द्रिय के वश मे होकर भ्रमर कमल मे जीवन दे देता हैं, मृग कर्णइन्द्रिय के वश मे होकर शिकार की गोली से मरता है तथा नेत्रइन्द्रिय के वश होकर पतगा दीपक मे प्राण दे देता है। इस प्रकार भोग इच्छा के प्रबल होने पर रोगाभाव इच्छा गौण हो जाती है।
प्र० २८-जब रोगाभाव इच्छा प्रबल हो तब मोह इच्छा का क्या
होता है ?
उत्तर-जब रोगाभाव इच्छा प्रबल रहती है तब कुटुम्बादि को छोड देता है, मन्दिर मकान, पुत्रादि को भी बेच देता है, इत्यादि रोग की तीव्रता होने पर मोह पैदा होने से कुटुम्बादि सम्बन्धियो से भी मोहका सम्बन्ध छूट जाता है तथा अन्यथा परिणमन करता है। इस प्रकार रोगाभाव इच्छा प्रबल होने पर मोह इच्छा गौण हो जाती
प्र० २६-जब रोगाभाव इच्छा प्रबल हो तब कषाय इच्छा का क्या होता है ?
उत्तर-कोई बुरा कहे तथा अपमानादि करे तब भी अनेक छलपाखण्ड कर व धन खर्च करके भी अपने रोग को मिटाना चाहता है। इस प्रकार रोगाभाव इच्छा के प्रबल होने पर कषाय इच्छा गौण हो जाती है।
प्र० ३०-जब रोगाभाव इच्छा प्रबल हो तब भोगइच्छा का क्या होता है ?
उत्तर-तथा भूख-तृषा, शीत-गर्मी लगे व पीडा इत्यादि रोग उत्पन्न हो जाए तब अच्छा-बुरा, मीठा-खारा और खाद्य-अखाद्य का भी विचार नही करता, खरोब अखाद्य वस्तु को खाकर भी रोग मिटाना चाहता है, जैसे पत्थर व वाडके काटादि खाकर भी भूख