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होकर प्राण तक भी दे देता है इत्यादि इस प्रकार कपाय इच्छा प्रबल होने पर मोह इच्छा गौण हो जाती है ।
प्र० २० - क्रोध कपाय होने पर क्या होता है ?
उत्तर - कोध कषाय प्रबल होने पर अच्छा भोजनादि नही खाता. वस्त्राभरणादि नही पहिनता है, सुगन्ध आदि नही सूघता, सुन्दर वर्णादि नही देखता, सुरीला रागरागणी आदि नही सुनता, इत्यादि विपय-सामग्री को बिगाड देता है, नष्ट कर देता है अन्य का घात कर देता है तथा नही बोलने योग्य निद्य वाक्य बोल देता है इत्यादि कार्य करता है ।
प्र० २१ - मान कषाय होने पर क्या होता है
उत्तर - मान कपाय तीव्र होने पर स्वय उच्च होने का, दूसरो को नीचा दिखाने का सदा उपाय करता रहता है । स्वय अच्छा भोजन लेने पर, सुन्दर वस्त्र पहनने पर सुगन्ध सू घने पर, अच्छा वर्ण देखने पर मधुर राग सुनने पर अपने उपयोग को उसमे नही लगाता, उसका कभी चितवन नही करता तथा अपने को वे खीजे कभी प्रिय नही लगती, मात्र विवाहादि अवसरो के समय अपने को ऊचा रखने के लिए अनेक उपाय करता है ।
प्र० २२ - लोभ कषाय होने पर क्या होता है ?
उत्तर-लोभ कषाय तीव्र होने पर अच्छा भोजन नही खाता है, अच्छे वस्त्रादि नही पहिनता, सुगन्ध विलेपनादि नही लगाता, सुन्दर रूप को नही देखता तथा अच्छा राग नही सुनता, मात्र धनादि सामग्री उत्पन्न करने की बुद्धि रहती है । कजूस जैसा स्वभाव होता है।
प्र० २३ - माया कषाय होने पर क्या होता है ?
उत्तर- माया कषाय तीव्र होने पर अच्छा नही खाता, वस्त्रादि अच्छे नही पहिनता, सुगन्धित वस्तुओ को नही सू घता, रूपादिक नही देखता, सुन्दर रागादिक नही सुनता । मात्र अनेक प्रकार के