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उत्तर - अहो' अहो' जिन-जिनवर औ जिनवर वृषभो से कथित 'सवरतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' महान उपकारी है । मुझे तो इस बात का पता ही नही था । ऐसा विचार कर अबन्ध स्वभावी ज्ञानदर्शन उपयोगमयी निज जीवतत्व का आश्रय लेकर बहिरात्मपने का अभाव करके अन्तरात्मा बनकर ज्ञानी की तरह निज आत्मा मे विशेष एकाग्रता करके परमात्मा बन जाता है ।
प्र० ७२ - जिन जिनवर और जिनवर वृषभों से कथित 'संवरतत्त्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' सुनकर दीघं संसारी मिथ्यादृष्टि क्या जानते हैं और क्या करते है?
उत्तर- जिन-जिनवर और जिनवर वृपभो से कथित 'सवरतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' का विरोध करते है और चारो गतियो मे घूमते हुये निगोद मे चले जाते है ।
प्र० ७३ - जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित 'संवरतत्त्व का ज्यों का त्यो श्रद्धान' का विशेष स्पष्टीकरण कहा देखें ?
उत्तर - जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला भाग तीसरा पाठ पहिले मे ३७७ प्रश्नोत्तर से ३९२ प्रश्नोत्तर तक मे देखियेगा ।
निर्जरातत्व का ज्यों का त्यों श्रद्धान
प्र० ७४ - छहढाला मे 'निर्जरातत्त्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' के विषय मे क्या बताया है ?
उत्तर - ( १ ) तप-बल से विधि झरन निरजरा, ताहि सदा आचरिये || भावार्थ - शुभाशुभ इच्छाओ के अभाव रूप तप की शक्ति से कर्मों का एकदेश खिर जाना सो निर्जरा है । उस निर्जरा को सदैव प्राप्त करना चाहिए ।