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________________ ( ११२ ) प्र० ६५-निज-जिनवर और जिनवर वृषभों से कथित 'बन्धतत्व का ज्यों का त्यों श्रद्धान' सुनकर दीर्घ ससारी मिथ्याष्टि क्या जानते है और क्या करते है ? उत्तर-जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित 'बन्धतत्व का ज्यौ का त्यो श्रद्धान' का विरोध करते है और चारो गतियो मे घूमते हुये निगोद मे चले जाते है। प्र०६६-जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित 'बन्ध तत्व का ज्यो का त्यों का श्रद्वान' का विशेष स्पष्टीकरण कहां देखें? उत्तर-जैन सिद्धात प्रवेश रत्नमाला भाग तीसरा पाठ पहिले मे ३६१ प्रश्नोत्तर से ३७६ प्रश्नोत्तर तक देखियेगा। प्र०६७-छहढाला मे 'संवरतत्व का ज्यों का त्यों श्रद्धान' के विषय मे क्या बताया है ? उत्तर- (१) शम-दम तै जो कर्म न आवै, सो सवर आदरिये ।। कपाय के अभाव को शम कहते है और द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय और इन्द्रियो के विषयभूत पदार्थ से आत्मा को भिन्न जानने को दम कहते हैं । कषाय के अभाव से और द्रव्येन्द्रिय-भावेन्द्रिय-इन्द्रियो के विषय भूत पदार्थो से निज आत्मा को भिन्न जानना मानना-यह 'सवरतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' है। अशुद्धि का उत्पन्न न होना और शुद्धि का प्रगट होना-यह प्रगट करने योग्य उपादेय है। (२) जिन पुण्य-पाप नहि कीना, आतम अनुभव चित दीना, तिनही विधि आवत रोके, सवर लहि सुख अव लोके ॥१०॥ अर्थ · जिन्होने शुभभाव और अशुभभाव नहीं किये तथा मात्र आत्मा के अनुभव मे (शुद्धोपयोग मे) ज्ञान को लगाया है । उन्होने आते
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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