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चौथा अधिकार
( जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नामाला भाग तीसरा पृष्ठ १८६ पर ३७ प्रश्न लिखे हैं यह ३८ प्रश्नोत्तर से वहां पर जोड़ने है ।)
जीवतत्त्व का ज्यो का त्यों श्रद्धान
प्र० ३८- छहढाला मे जीवतत्त्व का 'ज्यो का त्यो श्रद्धान' के विषय मे क्या कहा है ?
उ०- बहिरातम, अन्तरआनम, परमातम जीव त्रिधा है, देह जीव को एक गिने बहिरातम तत्त्व मुधा है || उत्तम मध्यम जघन त्रिविध के अन्तर आतम ज्ञानी; द्विविध सग बिन शुद्ध उपयोगी मुनि उत्तम निज ध्यानी ॥४॥ मध्यम अन्तर आतम है जे देशव्रती अनगारी, जघन कहे अविरतसमदृष्टि, तीनो शिवमग चारी ॥ सकल निकल परमातम द्वे विध तिन मे घाति निवारी, श्री अरिहन्त सकल परमातम लोकालोक निहारी ||५|| ज्ञान शरीरी विविध कर्म मल वर्जित सिद्ध महन्ता, ते है निकल अमल परमातम भोगे गर्म अनन्ता ॥ बहिरातमता हेय जानि तजि, अन्तर आतम हुजै, परमातम को ध्याय निरन्तर जो नित आनन्द पूजे || ६ ||
भावार्थ - प्रत्येक आत्मा ज्ञान दर्शन उपयोगमयी जीवतत्त्व है । पर्याय में तीन प्रकार के है- वहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा । (१) जो शरीर और आत्मा को एक मानते है उन्हे वहिरात्मा कहते है और वे तत्त्व मूढ मिथ्यादृष्टि है । (२) जो शरीर और आत्मा को अपने भेद - विज्ञान से भिन्न-भिन्न मानते हैं वे अन्तरात्मा है । अन्तरात्मा के तीन भेद है- उत्तम, मध्यम और जघन्य । अन्तरग