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भाराधना या उत्तमक्षमादि धर्मरूप वीतराग भाव की उत्कृष्टरूप से उपासना, इसका नाम पर्युषण है। जैसे रत्नत्रय के व दशधर्मों के उत्कृष्ट आराधक मुनिवरो है वैसे गृहस्थ श्रावको को भी अपनी भूमि का के अनुसार आशिकस्प से उन सब धर्मों की बाराधना होती है।
ऐसी आराधना की भावना करना, आराधना के प्रति उत्साह वढाना, याराधन जीवो के प्रति वहमान से वर्तना-इत्यादि सब तरह के उद्यम से आत्मा को आराधना मे लगाना, यह मुनि व श्रावक सभी का कर्तव्य है। इस लेख के द्वारा हम सबको ऐसी आराधना की प्रेरणा मिलती रहे-यही भावना है।
१. उत्तमक्षमा धर्म की आराधना उत्तम छिमा जहाँ मन होई, अन्तर वाहिर शत्रुन कोई॥
श्रेणिक राजा ने घोर उपसर्ग करने पर भी श्री यशोधर मुनिराज स्वरूप जी आराधना से डिगे नहि, क्षमाभाव धारण करके श्रेणिक को भी धर्मप्राप्ति का आर्शीवाद दिया।
दूसरी और श्रेणिक जा ने भी धर्म की विराधना का अनन्त क्रोध परिणाम छोडकर सम्यग्र्शन में धर्म की आराधना प्रगट की; यह भी उत्तमक्षमा की आराधना का एक प्रकार है।
क्रोध के वाह्य प्रसग उपस्थित होने पर भी, रत्नत्रय को दृढ आराधना के बल पर क्रोध की उत्पत्ति नही होने देना और वीतरागभाव रहना, असह्य प्रतिकूलता आने पर भी आराधना मे भग नहीं होने देना-वह उत्तम क्षमा की आराधना है। ऐसी क्षमा के आराधक सन्तो को नमस्कार हो।
२. उत्तम मार्दन धर्मकी आराधना उत्तम मार्दव विनय प्रकाश, नाना भेद ज्ञान सब भासे ।। ध्यानस्थ बाहुवली के चरणो मे आकर भरत चक्रवर्ती ने पूजन