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सुनलो भूल भुलैयो के चौतर्फ गोल परकोटा है, चौरासी जिसमे दरवाजे कोई बडा कोई छोटा है । रहे तिरासी बन्द सदा इक चौरासीवाँ खुलता है, ज्ञानी पुरुष निकल जाता पापी उसमे ही रुलता है ॥४॥ रख रख हाथ द्वार पर गिनते जाना एक किनारे से, बन्द तिरासी छोड निकलना चौरासीवें द्वारे से ।
घर-घर हाथ चला अन्धा दरवाजे गिनता जाता है, छोड तिरासी बन्द द्वार चौरासीवें पर याता है ||५|| तव अन्धे के गजे सिर मे खाज जोर की आई है, दरवाजो से उठा हाथ दोनो से खाज खुजाई है । भूल गया दरवाजे गिनना आगे को बढ जाता है, जाय फँसा फिर भूल भुलैयो मे मूरख पछताता है ॥६॥ खुले द्वार को छोड गया जो बडी कठिनाई से पाया था, दया भाव करके विद्याधर ने जो इसे बताया था, इसी तरह मे फँसे हुए लाख चौरासी मे ससारी, जन्म-मरण की भूल भुलैयो मे दुख भोग रहे है भारी ||७|| अज्ञानी अन्धा विषयो की खाज खुजाकर राजी है, मानुष जन्म खुला दरवाजा त्याग भ्रमै यह पाजी है । जिनवाणी अरु गुरुदेव ने अवसर हमे बताया है, भैय्या विषय भोग मे फँसि यह हमने वृथा गमाया है ||८||
(३०) शुद्ध, आत्मदेव पूजन
(राजमल पवैया )
जय जय जय भगवान आत्मा, शाश्वत निकट भव्य आसन्न । स्वय बुद्ध है स्वयं सिद्ध है स्वय पूर्ण प्रभुता सम्पन्न ॥