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यो कहता कहता कुम्हार जगल मे दौडा जाता है, जहाँ खोह मे छिपा हुआ था शेर वहाँ पर आता है ।।५३७ उधर शेर भी सोच रहा था गई अन्धेरी तो होगी, बहुत देर हो गई मुझे क्या अब तक भी बैठि होगी ।
यो विचार करि शेर खोह से बाहर निकला जब ही, गधा समभिकरि कुम्भकार ने घेर लिया उसको तब ही ||६|| डडे चारि जडे टाँगो पर मारि कमरि मे लातें दो, पूँछि मरोड कान को खैचा चलि बच्चे अब आगे को । काँपि गया सब अग शेर का बैठि गया दिल मे ये गम, हाय अधेरी आय गई अब मारि मारि करि दे बेदम ॥७॥ डर के मारे कुम्भकार के शेर चला आगे आगे, डन्डे मुक्के लात खात इतरात नही इत उत भागे । जागो मे लादि कमर पर बोझ चला गधहो के सग, भूलि गया सब चालि ढाल और कूद फाँद रंग ढंग उमग ||८|| जो था जगल का राजा थी धाक विपिन भर में जिसकी, भूलि गया निज रूप इसीसे बोझ लदा कटि पै इसकी । जो स्वाधीन विचरता था वह आज बधा पर बघन मे, देखि जिसे सब रोते थे वो रोता है मन ही मन मे ॥६॥ - वोझ लाद कर शेर गधो सग दोडा दौडा जाता है, आगे चल कर एक अपूरव दृश्य सामने आता है । देख रहा था एक दूसरा शेर पहाडी ऊपर से, शेर लदा चलता गधहो मे थरथर काँपि रहा डर से ॥१०॥ भूलि गया निज शक्ति शेरकी बल पौरष निर्भयता को, इसीलिये सहनी पडती हैं दुसह वेदनायें याको । जो जाकर निज रूप दिखायें तो आवे इसको निज याद, जाय जाति उद्धार करूँ पर बन्धन से करहूँ आजाद ॥ ११ ॥