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________________ प्रकाशकीय निवेदन भेद विज्ञान जग्यो जिनके घट, शीतल चित्त भयो जिमि चन्दन । केलि करें शिव मारग मे, जगमाहि जिनेश्वर के लघुनन्दन । सत्यस्वरूप सदा जिनके प्रगट्यो, अवदात मिथ्यात्व निकदन । सान्तदशा तिनको पहिचान, कर कर जोरि बनारसि बंदन ।। जगत के जीवो को गात्म स्वरूप का भान कराने वाले सच्चे देव-गुरू-शास्त्र, तथा जिनेश्वर के लघुनदन श्री गुरुदेव आदि महान आत्माओ के चरणो मे हमारा भक्तिभाव सहित अगणित नमस्कार । हमे तथा इसका मनन करने वालो को सम्यग्दर्शन ज्ञान-चारित्र की परिपूर्णता हो, ऐसी हमारी भावना है। यह आध्यात्मिक रचनाओ का अनमोल संग्रह है। इस छोटी सी गागर रे भावो का सागर भरा पड़ा है। प्राचीन जैन कवियो की सुन्दर रचनाओ का यह सकलन साहित्य की एक अमूल्य निधि है जिसके अध्ययन से हृदय मे बरबस विराग का निर्झर झरने लगता है। इसमे दर्शनपाठ, पूजा, सामायिक पाठ, तत्त्वचर्चा, भजन, योगसार, समाधि तन्त्र, इष्टोपदेश, मुमुक्षओ के नाम पत्र, आत्मज्ञान की गाथा आदि सर्व उपयोगी विषयों का संग्रह किया है। ताकि पात्र भव्य जीव थोड़े मे अपना आत्म कल्याण करके मोक्ष का पथिक बने। विषय और कषायो मे रचा पचा प्राणी यदि किसी आध्यात्मिक रचना आदि का पाठ करने लगे तो उसका हृदय परिवर्तन हुए बिना नहीं रहता। किन्तु पाठ कोरी वाचक क्रिया नही है । पाठ गत पवित्र भावो का मानस-पटल पर प्रतिफलन होना चाहिए। वह तो अन्तरनिरीक्षण पूर्वक हृदय को पावन करने का सुन्दर साधन है। ग्रामोफोन का रेकार्ड सबको अपना सन्देश सुनाता है किन्तु स्वयं कुछ
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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