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( ४२ )
करी है । घडी है ॥ १ ॥
चेत चेतन प्राप्त समय हो
जिस
कांपते हैं । हैं |
॥
ले |
ले ||
घडी
है ।
दे सके दुख जो तुझे वह, शक्ति ऐसी कौन है रे ? कर्म सुख-दुख दे रहे हैं, मान्यता ऐसी अवसर, आत्मचिन्तन की आत्मदृष्टि, कर्म थर थर भाव की एकाग्रता लखि, छोड खुद ही ले समझ से काम या फिर चतुर्गति ही मे -मोक्ष अरू ससार क्या है, फैसला खुद ही दूर कर दुविधा हृदय से, फिर कहाँ धोखा समझ उर घर कहत गुरुवर, आत्म चिन्तन की घडी है ॥२॥ कुन्दकुन्दाचार्य गुरुवर, गुरुवर, यह सदा ही कहि रहे हैं । समभना खुद ही पडेगा, भाव तेरे वहि रहे है ॥ शुभ क्रिया को धर्म माना, भव इसी से घर रहा है । है न पर से भाव तेरा भाव खुद ही कर है निमित्त पर दृष्टि तेरी, बान ही ऐसी चेत - चेतन प्राप्त अवसर, आत्म चितन की घडी है ॥ ३ ॥ भाव की एकाग्रता रुचि, लीनता पुरुषार्थ करले । मुक्ति बन्धन रूप क्या है, बस इसी का अर्थ कर ले | भिन्न हू पर से सदा में, इस मान्यता मे लीन हो जा । द्रव्य-गुण- पर्याय ध्रुवता, आत्म सुख चिर नीद सो जा ॥ आत्म गुण धर लाल अनुपम, शुद्ध रत्नत्रय जडी है | -समझ उर घर कहत गुरुवर, आत्म चितन की घडी है ॥४॥
रहा है ॥ पडी है ।
भागते
(१७) जिनवाणी माता की स्तुति
मिथ्यातम नाशवे को, आपा-पर भासवे को,
भानुसी बध बघ विधि
छहो द्रव्य जानवे को, स्व-पर पिछानवे को, परम
विचर
समझ
ज्ञान के प्रकाशवे को,
बखानी है । भानवे को, प्रमाणी है ।