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जयपुर
सम्पूर्ण दुःखों का अभोक होकर सम्पूर्ण सुख की प्राप्ति का उपाय
अनादिनिधन वस्तुएं भिन्न-भिन्न अपनी-अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती हैं। कोई किसी के आधीन नहीं हैं । कोई किसी के परिणमित कराने से परिणमित नहीं होती । पर को परिणमित कराने का भाव मिथ्यादर्शन है ।
[मोक्षमार्गप्रकाशक]
अपने-अपने सत्व कूं, सर्व ऐसे चितवै जोव तब, परते
वस्तु विलसाय । ममत न थाय ॥
सत् द्रव्य लक्षणम् । उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्त सत् ।
[मोक्षशास्त्र]
"Permanancy with a Change" [ बदलने के साथ स्थायित्व ]
NO SUBSTANCE IS EVER DESTROYED IT CHANGES ITS FORM ONLY
[ कोई वस्तु नष्ट नहीं होती, प्रत्येक वस्तु अपनी अवस्था बदलती है । ]
भारतीय श्रुति-दर्शन केन्द्र
जयपुर