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(२५) नाचने गाने लगा, यह नाद सा, आने लगा।' कुछ अन्य मुझको, नहिं शरण, है शरण या परमात्मा ॥६॥ काल लब्धि आज जागी, गान्ति पथ मुझको मिला। आज निश्चय हो गया, पाउगा जीवन की कला ॥७॥ आज जग के कीट को भो, जिनेन्द्र पद मिल जायेगा। आज इस विक्षिप्त सर मे, भी कमल खिल जायेगा ||et ॐ पड़ी श्री विगति तीर्यगय नम (पुष्पांजनि)
(६) श्री देव शास्त्र गुरु पूजा
(श्री युगलजी) केवल रविकिरणो मे जिसका सम्पूर्ण प्रकाशित है अतर । उमश्री जिनवाणी मे होता, तत्वो का सुन्दरतम दर्शन ।। सद्दर्शन बोध वरण पथ पर, अविरल जो बढते हैं मुनिगण। उन देवचरम आगम गुरु को, शनशत् वदन शतगत् वदन 12 ॐ ह्री श्री देवशास्त्रगुमनमूह | अन्न अवतर यवतर मवौषट् आह्वानन् ।। ॐ ह्री श्री देवशास्त्रगुरुममूह । अत्र तिष्ठ-तिप्ठ ठ ठ स्थापनम् । ॐ ह्री ती देवशास्त्रगुरुममूह | अवमम गन्निहितो भवभय वपट् । इन्द्रिय के भोग मधुर विपसम, लावण्यमयी कचन काया। यह सब कुछ जड की क्रीडा है, मैं अब तक जान नहीं पाया ।।। मैं भून स्वय के वैभव को, पर ममता मे अटकाया है।
अव निर्मल सम्यक् नीर लिये, मिथ्या मल धोने आया हूँ ।' ॐ ह्री देवगाम्बगुरुभ्य जन्म जरा मृत्यु विनाशाय जल निपामीति माहा ॥१॥
जड चेतन की सब परिणति प्रभु | अपने-अपने मे होती है। अनुकूल कहे, प्रतिकूल फहे, यह झूठी मन को वृत्ती है ।।