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चेतन ज्ञान विशिष्ट वस्तु है जड मे ज्ञान नहीं रहता, आदि रहित है अन्त रहित है जड चेतन की यह सत्ता। यही विश्व मे रहे रहेगे रहना इनका काम भी ।।४॥ जो है उसको कौन मिटावे और नही को लावे कौन, भिन्न-भिन्न हो जिसकी सत्ता उसको कहो मिलावे कोन । प्रति पलका निश्चित परिवर्तन कौन करे आगे-पीछे, सत् का अरे विनाश असत का उत्पादन हो तो कैसे । स्वय सिद्ध जो उसको वया आवश्यकता भगवान की ॥५॥ होता नही विनाश कभी पर्याय बदलती रहती है, अरे । तरगित सरिता जैसे अविकल बहती रहती है। उठती हैं कल्लोल उसी मे विलय उसी मे हो जाती, पर सरिता तो अपने पथ पर शाश्वत ही वहती जाती। पल पल अलट पलट करता अणु-अणु सत्ता का त्राण भी ।।६।। यह पर्याय स्वभाव कि वह तो सदा पलटती रहती है, आता नव उत्पाद पुरानी व्यय को पाती रहती है। द्रव्य सदा ध्रुव होकर रहता उसकी अक्षय सत्ता है, ब्रह्मा विष्णु महेश यही उत्पाद ध्रौव्य व्यय मत्ता है। यही वस्तु का अक्षय जीवन यही सहज वरदान भी ॥७॥ है स्वभाव यह सहज वस्तु का सदा अकेला एक है, यह ही उसकी सुन्दरता है वह पर से निरपेक्ष है। सदा अरे अपने गुण पर्यायो मे खुल कर खेलता, किन्तु एक की कृतियो का फल नही दूसरा झेलता। झूठ कहानी अरे परस्पर सुख-दुख-वाधा दान की॥८॥ अणु को भी अवकाश नही है अपने-अपने काम से, सभी सदा सम्राट अकेले अपने-अपने घाम के। अपना काम सदा करने की अणु मे भी बल शक्ति है, नही प्रतिक्षा पर की करता उसके कल की रीति है, स्वय शक्ति मय कौन अपेक्षा पर से बल आदान की ॥६॥