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हृदय मे सर्व जीवों के प्रति विशेष दया रूप कोमल परिणाम रहता है, धर्मात्मा के गुणो को प्रसिद्ध करते हैं तथा अवगुणों को ढांकते हैं । (६) धर्मात्मा जीवो को धर्म मे शिथिल होता जाने तो हर सम्भव उपाय के द्वारा उन्हे मोक्षमार्ग मे स्थिर करते हैं । (७) साघर्मी बन्धुओं को देखकर उनके प्रति गौ वत्स समान प्रीति करते हैं । (५) ऐसे सभी धर्म कार्यो को करते हैं कि जिससे धर्म की अतिशय महिमा प्रसिद्ध हो - इत्यादि प्रमाण सहित सम्यक्त्व होने पर निशकितादि आठ गुण तत्काल प्रगट हो जाते हैं ॥२-५॥
मदन जो नृप तात, मदनहि भूपति माम को । मदन विभव लहात, मद नह सुन्दर रूप को ॥ ६ ॥ मद नहिं जो विद्वान, मद नहि तन मे जोर को । मद नहिं जो परधान, मद नहि सम्पत्ति कोष को ॥७॥ हूओ आतम ज्ञान, तज रागादि विभाव पर । ताको ह्वय क्यो मान, जात्याविक वसु अथिर का ॥८॥
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अर्थ – सम्यकदष्टि जीव का ( १ ) पिता राजा होय तो उसका "भी कुलमद नही होता है । (२) मामा राजा होय तो उसका भी जातिमद नही होता है । (३) वैभव धन ऐश्वर्य की प्राप्ति होने का भी मद नही होता है । ( ४ ) सुन्दर रूप लावण्य का भी मद नहीं होता है । (५) ज्ञान का भी मद नही होता है । ( ६ ) शरीर में 'विशेष ताकत बल होप उसका भी मद नही होता है। (७) लोक में कोई मुखिया प्रधान पद वगैरह अधिकार का भी मद नही होता है । (८) धन-सम्पति कोष का भी मद नही होता है । जिससे रागादि विभाव भावो को छोड़कर उनसे भिन्न आत्मा का ज्ञान प्रगट किया है उसको जाति आदि आठ प्रकार की अस्थिर नाशवान वस्तुओ का म्मद कैसे हो सकता है ? कभी भी नही हो सकता है । इस तरह से सम्यग्दृष्टि जीव को आठ प्रकार के मदो का अभाव वर्तता है ॥ ६-८ ॥