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निश्चय उपादेय है व्यवहार हेय है, नय दृष्टि करले भव चला जाय रे ॥३॥ पूजा भक्ति दया, तप और दान, बिना समझे किये आतम भात | स्व दृष्टि करले अवसर है आया, व्यभिचार छोड दे भव चला जाय रे ॥४॥ पचम बीच नाचे ये निर्णय कर तू, चौथा समझले पुरुषार्थ कर तू । प्राप्त की प्राप्ति अवश्य होती है, सन्देह छोड दे भव चला जाय रे ॥५॥ सयोग जो होता है अपने ही कारण, वियोग जो होता है अपने ही कारण । परद्रव्य का कुछ भी कभी न कर सके तू, कृतीत्व छोड दे भव चला जाय रे ॥६॥ बहुत काल बीता धर्म ना पाया, स्व मे धर्म था पर मे जो चेतन चेततू अवसर है आया, भेदज्ञान करले भव चला जाय रे ॥७॥ ५३. (शिवराम )
माना ।
हे जिनवाणी माता तुमको लाखो प्रणाम, तुमको लाखो प्रणाम । शिवसुखदानी माता तुमको लाखो प्रणाम, तुमको लाखो प्रणाम । 'टेक | तू वस्तुस्वरूप बतावे, अरू सकल विरोध मिटावे । स्याद्वाद विख्याता तुमको लाखों प्रणाम, तुमको लाखो प्रणाम ॥१॥ तू करे है ज्ञान का मण्डन, मिध्यात्व कुमारग खण्डन ।
तीन जगत की माता तुमको लाखो प्रणाम, तुमको लाखो प्रणाम ||२|| तू 'लोक अलोक प्रकासे, चर अचर पदार्थ विकासे ।
विश्व तत्व की ज्ञाता तुमको लाखो प्रणाम, तुमको लाखो प्रणाम
॥३॥