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( १३८ ) मैं तो पशुओ मे जाकर के पैदा हुआ, मेरा और भी दु ख वहां ज्यादा हुआ । 'किसी मांस के भक्षी ने आन हता, मुझ दीन को जाने दिया ही नही ॥३॥ मै तो स्वर्गों मे जाकर देव हुआ, मेरे दुःख का वहाँ भी न छेद हुआ, मैं तो आयु को यूं ही बिताता रहा, "मैंने सयम भार लिया ही नही ।।४।। प्रभु उत्तम नरभव मैंने लहा,
और निशदिन विषयो मे लिप्त रहा। माता पिता प्रियजन ने मुझे, चैन तो लेने दिया ही नही ।।५।। मैंने नाहक जीवो का घात किया,
और पर धन छलकर खोश लिया। मेरी औरो की नारी पे चाह रही, मैंने सत तो भाषण दिया ही नही ॥६॥ मैं तो मोह की नीद मे सोता रहा, मैंने आतम दरस किया नही । 'मैं तो क्रोध की ज्वाला मे भस्म रहा, मैंने शान्ति सुधा रस पिया ही नहीं ॥७॥ जिनवर प्रभु अब सुनिये तो जरा, 'मेरा पापो से डरता है जियरा ।
खडा थारे चरणो मे ये दास चमन, मैंने और ठिकाना लिया ही नही ॥८॥
४५ जीव स्वतंत्र है कोई बधन नही, इसका पुद्गल में आना गजब हो
गया ॥टेक।