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( ११० ) चाहे कितना चतुर कारीगर हो तथापि वह दो घडी मे मकान तैयार नही कर सकता, किन्तु यदि आत्मस्वरूप की पहचान करना चाहे तो वह दो घडी मे भी हो सकती है। आठ वर्ष का वालक एका मन का वोझ नही उठा सकता, किन्तु यथार्थ समझ के द्वारा आत्मा की प्रतीति करके केवल ज्ञान को प्राप्त कर सकता है । आत्मा पर द्रव्य मे कोई परिवर्तन नही कर सकता, किन्तु स्व-द्रव्य ने पुरुपार्थ के द्वारा समस्त अज्ञान का नाश करके, सम्यकज्ञान को प्रगट करके केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है। स्व परिणमन मे आत्मा सम्पूर्ण स्वतन्त्र है, किन्तु पर मे कुछ भी करने के लिए आत्मा मे किंचितमात्र सामर्थ्य नहीं है । आत्मा मे इतना अपार स्वाधीन पुरुषार्थ विद्यमान है कि यदि वह उल्टा चले तो दो घडी मे सातवे नरक जा सकता है और यदि सीधा चले तो दो घडी मे केवलज्ञान प्राप्त करके सिद्ध हो सकता है ।
परमागम श्री समयसार जी मे कहा कि-'यदि यह आत्मा अपने शुद्ध आत्मस्वरूप को पुदगलद्रव्य से भिन्न दो घडी के लिये अनुभव करे (उनमे लीन हो जाय। परिपहो के आने पर भी न डिगे तो घातिया कर्मों का नाश करके केवलज्ञान को प्राप्त करके माक्ष को प्राप्त हो जाय । आत्मानुभव की ऐसी महिमा है. तो मिथ्यात्व का नाश करके सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का होना सुलभ ही है, इसलिए श्री परमगुरुओ ने इसी का उपदेश प्रधानता से दिया है।'
श्री समय-ार-प्रवचनो मे आत्मा की पहिचान करने के लिये बारम्बार प्रेरणा की गई है, यथा
(2} चैतन्य के विलासरूप आनन्द को भीतर मे देव । अन्दर के उस आनन्द को देखते ही तू गरीरादि के मोह को तकल छोड सकेगा। "झगिति' अर्थात झट से छोड़ सकेगा। यह बात सरल है, क्योकि यह तेरे स्वभाव की बात है।
(२) सातवें नरक की अनन्त वेदना ने पड़े हुए जीवो ने नी आत्मानुभव प्राप्त किया है, यहाँ पर सातव नरक जैसी तो पीटा नही