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धर्मात्मा शेठ सुदर्शन प्राणान्त जैसे प्रसग आने पर भी अपने ब्रह्मचर्य व्रत से डिगे नही । रावण के द्वारा अनेक तरह से ललचायी जाने पर भी भगवती सीता अपने ब्रह्मचर्य से नही डिगी ।
जगत के सर्व विपयो से उदासीन होकर ब्रह्मस्वरूप निजात्मा मे जिसने चर्या प्रगट की ऐसे उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के आराधक सन्ता धर्मात्माओ को नमस्कार ही ।
(३३) भगवान महावीर
दीपावली मंगल दीपावली कार्तिक वदी अमावस्या का सुप्रभात सारा भारत आज अनोखे आनन्द से यह दीपोत्सव मना रहा है । किसका है यह मंगल - दीपोत्सव ?
पावापुरी का पवित्रधाम हजारो दीपको की जगमगाहट से आज दिव्य शोभा को धारण कर रहा है । वीरप्रभु के चरण समीप बैठ करके भारत के हजारो भक्तजनो वीरप्रभु के मोक्ष गमन का स्मरण कर रहे है और उस पवित्र पद की भावना भा रहे हैं । अहा 1 भगवान महावीर ने आज ससार बन्धन से छूटकर अभूतपूर्व सिद्धपद प्राप्त किया। अभी वे सिद्धालय मे विराज रहे हैं। पावापुरी के जल - मन्दिर के ऊपर लोकशिखर पर अपने सिद्धे पद मे प्रभू विराज -- मान हैं ।
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कैसा है यह सिद्धपद ? सन्तो के हृदयपट मे उत्कीर्ण यह सिद्धपद का वर्णन करते हुए श्री कुन्दकुन्दास्वामी नियमसार मे कहते हैं किकमष्टिवजित परम जन्म- जरा - मरणहीन शुद्ध है । ज्ञानादि चार स्वभाव है अक्षय अनाश मछेद्य है || अनुपम अतीन्द्रिय पुण्यपापविमुक्त अव्यावाध है | पुनरागमनविरहित निरालबन सुनिश्चल नित्य है ॥ मात्र सिद्धदशा में ही नही परन्तु इसके पहले
ससार अवस्था के