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उपस्थित होने पर भी वह अपने सयम मे दृढ रहे, और आगे बढकर सुति होकर केवलज्ञान पाया ।
अतर्मुख होकर निज स्वरूप मे जिसका उपयोग गुप्त हो गया है ऐसे मुनिवरो को स्वप्न मे भी किसी जीव को हनने की वृत्ति या इन्द्रियविपयो की वृत्ति नही होती, उन उत्तम सयम के आराधक मुनिवरो को नमस्कार हो ।
७. उत्तम तप धर्म की आराधना
उत्तम तप निरवांछित पालै, सो नर करम शत्रु को टाले । शत्रु जयगिरि के ऊपर ध्यानरत पांडव भगवन्तो को धग धगते अग्नि के उपद्रव होने पर भी वे अपने ध्यानरूप तप से डिगे नही । वैसे ही चैतन्य ध्यान मे रत बाहुबली भगवान ने एक वर्ष तक अडिगता से शीत - घाम व वर्षा के उपसर्ग सहे, चैतन्य के ध्यान द्वारा विषयकषाय को नष्ट किया, और चैतन्य के उग्र प्रतपन से केवलज्ञान प्रगट किया । घोर उपसर्ग होने पर भी पार्श्वनाथ तीर्थकर निज स्वरूप के ध्यानरूप तप से नही डिगे, न तो उन्होने धरणेन्द्र के ऊपर राग किया ओर न कमठ के प्रति द्वेष, वीतराग होकर केवलज्ञान प्रगट किया । इस प्रकार स्वसन्मुख उपयोग के उग्र प्रतपन से कर्मों को भस्म करने वाले उत्तम तपधर्म के आराधक सन्तो को नमस्कार हो ।
८. उत्तम त्याग धर्म की आराधना
उत्तम त्याग करें जो कोई, भोग भूमि- सुर-शिव सुख होई ।
'मैं शुद्ध चैतन्यमय आत्मा हूँ, देहादि कुछ भी मेरा नही' इस प्रकार सर्वत्र ममत्व के त्यागरूप परिणाम से चैतन्य मे लीन होकर मुनिराज उत्तम त्याग धर्म की आराधना करते हैं ।
श्रुत का व्याख्यान करना, साधर्मीओ को पुस्तक, स्थान या सयम के साधन आदि देना वह भी उत्तम त्याग का प्रकार है, कोई मुनिराज