________________ वैराग्य को कष्टदाता मानने रूप सवरतत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव होकर पूर्ण अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति होवे यह उपाय छहढाला की दूसरी ढाला मे बताया है। प्रश्न ७-निश्चय सम्यकदर्शन-ज्ञान वैराग्य को कष्टदाता मानने रूप खोटी मान्यता को आपने संवरतत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप मगहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि बताया, परन्तु निश्चय सम्यकदर्शनज्ञान वैराग्य कष्टदाता है ऐसा तो ज्ञानी भी कहते सुने-देखे जाते हैं। तो क्या ज्ञानियों को भी संवरतत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत. ग्रहीत मिथ्यावर्शनादि होते हैं ? उत्तर-ज्ञानियो को बिल्कुल नही होते है [1] क्योकि जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो ने निश्चय सम्यक्दर्शन-ज्ञान-वैराग्य को कष्टदाता मानने रूप मान्यता को सवरतत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि बताया है परन्तु ऐसे कथन को नहीं कहा है। [2] ज्ञानी जो बनते है वे सवर तत्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव करके ही बनते हैं। [3] ज्ञानियो को हेय-ज्ञेय-उपादेय का ज्ञान वर्तता है। [4] सम्यक् - दर्शन ज्ञान-वैराग्य कष्टदाता है ऐसे ज्ञानी के कथन को आगम मे उपचारित सद्भूत व्यवहारनय कहा है। निर्जरातत्त्व प्रश्न १-मज्ञानी निर्जरातत्व के विषय में कैसा मानता है ? उसर-आत्मा के आश्रय से शुद्धि की वृद्धि को निर्जरा कहते हैं परन्तु अज्ञानी अनशनादि तप से निर्जरा होना मानता है। प्रश्न २-आत्मा के आभय से शुद्धि की वृद्धि रूप निचरा को