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तत्त्व विचार वाला इनके बिना भी सम्यक्त्व का अधिकारी होता है । [मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २६०]
प्रश्न ३६-जीव का कर्तव्य क्या है ?
उत्तर-जीव का कर्तव्य तो तत्त्व निर्णय का अभ्यास ही है इसी से दर्शन मोह का उपशम तो स्वयमेव होता है उसमे (दर्शनमोह के उपशम मे) जीव का कर्तव्य कुछ नही है। [मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ३१४]
प्रश्न ३७-जिनधर्म की परिपाटी क्या है ?
उत्तर-जिनमत में तो ऐसी परिपाटी है कि प्रथम सम्यक्त्व होता है फिर व्रतादि होते हैं । सम्यक्त्व तो स्व-पर का श्रद्धान होने पर होता है, तथा वह श्रद्धान द्रव्यानुयोग का अभ्यास करने से होता है। इसलिए प्रथम द्रव्य-गुण पर्याय का अभ्यास करके सम्यग्दृष्टि बनना प्रत्येक भव्य जीव का परम कर्तव्य है । [मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २६३]
प्रश्न ३८-किन-किन ग्रन्थो का अभ्यास करे तो एक भूतार्थ स्वभाव का आप्रय बन सके ?
उत्तर- मोक्षमार्ग प्रकाशक व जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला के सात भागो का सूक्ष्मरीति से अभ्यास करे तो भूतार्थ स्वभाव का आश्रय लेना बने।
प्रश्न ३६-मोक्ष मार्ग प्रकाशक व जैन सिद्धांत प्रवेश रत्नमाला मे क्या-क्या विषय बताया है ?
उत्तर- छह द्रव्य, सात तत्त्व, छह सामान्य गुण, चार अभाव, छह कारक, द्रव्य-गुण पर्याय की स्वतन्त्रता, उपादान-उपादेय, निमित्त नैमित्तिक, योग्यता, निमित्त, समयसार सौवी गाथा के चार बोल,
औपशमकादि पाच भाव, त्यागने योग्य मिथ्यादर्शनादि का स्वरूप तथा प्रगट करने योग्य सम्यग्दर्शनादि का स्वरूप तथा एक निज भूतार्थ के आश्रय से ही धर्म की प्राप्ति हो सकती है, मादि विषयो का सूक्ष्म