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________________ (९) स्व सत्ता के अवलम्बन से ज्ञानी निजात्मा को अनुभवते है। अहो । ऐसे स्वानुभव ज्ञान से मोक्ष मार्ग के साधने वाले ज्ञानियो की महिमा की क्या बात ? इनको दशा को पहिचानने वाले जीव भी निहाल ही हो गये हैं। (१०) पर को साधने से सम्यग्दर्शन नही मिल सकता। (११) देहादि की क्रिया मे या शुभ राग मे भी सम्यग्दर्शन नहीं मिल सकता। परोक्ष ज्ञान के पाँच भेदो का वर्णन प्रश्न २०६-स्मृति, प्रभज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम ये पाँच भेद किसके हैं। उत्तर-परोक्ष ज्ञान के है। ये पॉचो ज्ञान-प्रत्यक्ष या परोक्ष वे सब- अपने ही से होते है, पर से ज्ञान नही होता है । प्रश्न २०७-परोक्ष ज्ञान तो पर से होता है ? उत्तर-बिल्कुल नही होता है। परोक्ष ज्ञान भी कही इन्द्रिय या मन से नही होता है। जानन स्वभावी आत्मा अपने स्वभाव से ही ऐसी अवस्था रूप परिणता है। प्रश्न २०८-स्मति आदि परोक्ष ज्ञान पर से नहीं होते है जरा. स्पष्ट समझाइये? उत्तर-जैसे मिठास स्वभाव वाला गुड कभी मिठास के बिना नही होता और न इसकी मिठास पर मे से आती है, वैसे ही ज्ञान स्वभाव आत्मा कभी ज्ञान के बिना नही होता, और न इसका ज्ञान पर मे से आता है। याद रखना-ज्ञान से परवस्तु ज्ञाता होती है. परन्तु ज्ञान कही पर मे जा करके नही जानता, और पर मे से ज्ञाननही आता है। प्रश्न २०९-स्मृति आदि पाँच भेद किस ज्ञान के हैं ?
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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