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उत्तर-त्रम की स्थिति का उत्कृष्ट काल दो हजार सागर से कुछ अधिक है यदि दो हजार सागर के अन्दर आत्मा को यथार्थतया •समझ ले तो मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। यदि ना समझे तो बस की स्थिति पूर्ण होने पर निगोद मे चला जावेगा जिसका दृष्टान्त द्रव्यलिंगी मुनि मिथ्यात्व के कारण अल्पकाल मे निगोद चला जाता है। सम्यग्दष्टि को शुभभाव हेय वृद्धि से आता है वह उसका अभाव करके शुद्ध रूप परिणत होकर अल्पकाल मे मोक्ष मे चला जाता है ।
प्रश्न १४०-भिखारी कौन है और राजा कौन है ?
उत्तर-(१) जो अत्यन्त भिन्न पर पदार्थों का, (२) औदारिक आदि शरीरो का, (३) विकारी भावो का, (४) अपूर्ण-पूर्ण शुद्ध 'पर्यायो का माहात्म मानने वाला भिखारी है और अपने स्वभाव का आश्रय लेने वाला भगवान राजा है।
प्रश्न १४१-अपराध क्या है और राध क्या है ?
उत्तर-(अ) (१) पर पदार्थों का, (२) विकारी भावो का (३) अपूर्ण-पूर्ण पर्यायो का आश्रय मानना अपराध है। (आ) अपने स्वभाव का आश्रय लेना वह राध है, प्रसन्नता है सुखीपना है ।
प्रश्न १४२-~~-गुरु के कहे अनुसार आज्ञा का पालन करने वाला 'शिष्य कैसा होता है ?
उत्तर-अमावस्या की अर्ध रात्रि मे १२ वजे गुरु ने शिष्य को जगाया और कहा देख । "मध्यान्ह का सूर्य कैसा प्रकाशित हो रहा है।" शिष्य ने कहा, हाँ भगवान, ठीक है। अगले दिन शिष्य ने गुरु से पूछा, हे भगवान । जो आपने कहा था "देखो मध्यान्ह का सूर्य कैसा प्रकाशित हो रहा है" यह मेरी समझ मे नही आया-कृपा करके -समझाइये। गुरु ने कहा हमारा तात्पर्य यह था कि तुझे सम्यग्दर्शन तो हो गया है और अब जल्द ही केवलज्ञान रूप मध्यान्ह का उदय होने वाला है।
प्रश्न १४३-मरण के भय का अभाव कैसे हो?
है।" और कहा देखा की अर्थ