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( २७४ ) कि अपने ज्ञायक स्वभाव का आश्रय ले, तो पर्याय मे नौ क्षायिक लब्धियो की प्राप्ति हो।
प्रश्न ११८-आत्मा में जोड़, बाकी, गुणा और भाग कैसे करना चाहिये ?
उत्तर-(१) जोड-अपनी आत्मा मे शुद्धता का जोड करना। (२) बाकी-अपनी आत्मा मे से राग विकार का बाकी करना। (३) गुणा--शुद्धि का गुणाकार रूप करना । (४) भाग-भाग करते हुए जो एक ज्ञायक भाव बचा, वह "मैं" यह आत्मा का जोड, बाकी, गुणा और भाग है।
प्रश्न ११६-सब से सूक्ष्म कौन है और उसके जानने से क्या लाभ है ?
उत्तर-(१) जव औदारिक शरीर को स्थूल कहे, तो वैक्रियिक शरीर सूक्ष्म है। (२) जब वैक्रियिक शरीर को स्थूल कहे, तो आहारक शरीर सूक्ष्म है । (३) जब आहारक शरीर को स्थूल कहे, तो तैजस शरीर सूक्ष्म है। (४) जब तैजस शरीर को स्थूल कहे, तो कार्माण शरीर सूक्ष्म है । (५) जब कार्माण शरीर को स्थूल कहे, तो पुण्य-पाप विकारी भाव सूक्ष्म है। (६) जब विकारी भावो को स्थूल कहे, तो शुद्ध पर्याय सूक्ष्म है । (७) जब शुद्ध पर्याय को स्थूल कहे, तो त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव सूक्ष्म है। इसलिए एक मात्र अपना त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव अति सूक्ष्म है। उसका आश्रय लेने से ही धर्म की शुरूआत, वृद्धि और पूर्णता होती है। त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव की अपेक्षा सब स्थूल है । स्थूल का आश्रय लेने से चारो गतियो मे परिभ्रमण करना पडता है।
प्रश्न १२०-पात्र धीर पुरुष कौन है ?
उत्तर-जैसे-जब राक्षसो ने देवो को तग किया । तब वह भगवान के पास गये कि हमे राक्षस तग करते हैं। तब भगवान ने कहा, राक्षसो से बचने के लिए यदि समुद्र मे से अमृत निकाल कर पी लिया