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पहिचान ज्ञानियों को है, अज्ञानियों को नही ।
शुद्ध परिणतिरूप जितनी स्थिरता होती है, वह तो राग-द्वेष का अभावरूप वर्तती है और जितना वह अपने से खिसक जाता है वह राग-द्व ेष की उत्पत्ति का मूल कारण है ।
प्रश्न ७४ -- एक मुमुक्षु भाई की पंडित जी के साथ आपस में, क्या चर्चा हुई थी ?
प्र० - मुमुक्षु = राग-द्वेष की उत्पति का क्या कारण है ? साथ हीं आप यह तो जानते और मानते ही है, कि हर कार्य की उत्पत्ति मे दो कारण होते हैं- उपादान और निमित्त । राग-द्व ेष की उत्पत्ति मे निमित्त कारण मोहनीय कर्म है इसमे आपको और हमे किसी को भीआपत्ति नहीं है, लेकिन पण्डित जी ! उपादान कारण क्या है ?
उत्तर - पण्डितजी वैभाविक शक्ति उपादान कारण है ।
प्रo - मुमुक्षु = वैभाविकशक्ति गुण है यदि वह राग-द्वेष का उपादानकारण हो तो सिद्धो मे भी राग होना चाहिए, इसलिए पण्डित जी वैभाविकशक्ति तो राग-द्वेष का उपादानकारण प्रतीत नहीं होता है
?
उत्तर - पण्डित जी = फिर आप ही बताइए ।
प्र० = मुमुक्षु = में तो आपको बता ही दूंगा, लेकिन मै आप से ही इसका उत्तर कहलवाना चाहता हूं। अच्छा पण्डित जी, आप - थोड़ी देर के लिए इस प्रश्न को डिपोजिट रखिये और पण्डित जी ! यह बताइए कि 'राग-द्वेष के अभाव का क्या कारण हैं ?
उत्तर - पण्डित जी = निमित्तकारण मोहनीय कर्म का अभाव है और उपादानकारण त्रिकाली स्वभाव का आश्रय है ।
प्रo - मुमुक्षु = ठीक है, पण्डित जी | देखिये जैसे राग-द्वेष के अभाव का उपादानकारण त्रिकाली स्वभाव का आश्रय है, उसी प्रकार राग-द्वेष की उत्पत्ति का उपादानकारण अपने त्रिकाली स्वभाव का आश्रय ना करना, यह है | देखिये पण्डित जी ! जो बात डिपोजिट