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(१४) रीति से वर्णन किया है ताकि जीव निज स्वभाव का आश्रय लेकर मोक्ष का पथिक बने।
प्रश्न ४०-क्या जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला के सात भाग आपने बनाये हैं ?
उत्तर-जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला के सात भाग तो आहार वर्गणा का कार्य है। व्यवहारनय से निरूपण किया जाता है कि मैंने बनाये है । अरे भाई। चारो अनुयोगो के ग्रन्थो मे से परमागम का मूल निकालकर थोडे मे सग्रह कर दिया है। ताकि पात्र भव्य जीव सुगमता से धर्म की प्राप्ति के योग्य हो सके । इन सात भागो का एक मात्र उद्देश्य मिथ्यात्वादि का अभाव करके सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति कर क्रमश मोक्ष का पथिक बनना ही है । भवदीय
कैलाश चन्द्र जैन
बन्ध और मोक्ष के कारण परद्रव्य का चिन्तन ही बन्ध का कारण है और केवल विशुद्ध स्वद्रव्य का चिन्तन ही मोक्ष का कारण है।
[तत्वज्ञानतर गिणी १५-१६]
सम्यक्त्वी सर्वत्र सुखी सम्यग्दर्शन सहित जीव का नरकवास भी श्रेष्ठ है, परन्तु सम्यग्दर्शन रहित जीव का स्वर्ग मे रहना भी शोभा नहीं देता; क्योकि आत्मज्ञान बिना स्वर्ग मे भी वह दुःखी है।। जहाँ आत्मज्ञान है वही सच्चा सुख है।
[सारसमुच्चय-३९]
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