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________________ ( २२८ ) उत्तर- भगवान का गणधर चार ज्ञान धारी होता है और गणधर की उपस्थिति भगवान की देशना के समय अवश्य ही होती है । भगवान की दिव्यदेशना एक दिन मे चार बार होती है। एक वार दिव्यदेशना ६ घडी होती है; इस प्रकार एक दिन मे ॥ घण्टे से ज्यादा तो दिव्यदेशना धर्म वजीर गणधर भी श्रवण करता है । धर्मवजीर गणधर अन्तर्मुहर्त मे १२ अग की रचना करता है । इतना ज्ञान का धनी होने पर भी भगवान की वाणी सुनता है तब अल्पज्ञानी या अज्ञानी के लिए उसका निषेध कैसे हो सकता है ? कभी नही । परन्तु जो जीव स्वछन्दी है पूरी बात का विचार नही करते, वे ही कहते हैं कि “जब ज्ञान से ज्ञान होता है, तव वाणी, सत्समागम की क्या आवश्यकता है" ? लेकिन याद रखना चाहिए जब तक जीव विकार रहित नही होता, तब तक अल्प ज्ञानी को वाणी सुनने का और सत्समागम करने का भाव आता ही है । तब जो अज्ञानी है, उनको तो निरन्तर सत्समागमादि होना ही चाहिए। हमेशा उपदेश तो आगे बढने का ही दिया जाता है। जब तक केवलज्ञान ना हो, तब तक ज्ञानी भी वाणी श्रवण करते हैं । जो अपनी आत्मा मे पूर्ण स्थिरता करके अरहत सिद्ध बन जाते हैं उनकी बात, तथा जो श्रेणी आरूढ होते है उनकी बात, यहाँ पर नही है । प्रश्न २० - हमने तो भगवान की वाणी अनन्त बार सुनी है और आप कहते हैं कि गुरु की वाणी सुनो और सत्समागम करो - परन्तु गुरु की वाणी भगवान की वाणी के सामने क्या है ? उत्तर - अज्ञानी कहता है कि मैने अनेको बार भगवान की दिव्यवाणी को सुना है अब गुरु की वाणी का मेरे ऊपर क्या असर होना है । (१) देखो भाई । जैसे एक राजा था । उसके पास वहादुर लडाका एक ऊँट था । दूसरे राजा ने उसके राज्य पर चढाई कर दी । वहाँ की जमीन रेतीली थी वहाँ पर घमासान लडाई हुई । उस बहादुर
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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