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शुभभाव को अच्छा मानता है उसका संसार भ्रमण बढता है और वह दुख भोगता है ऐसा जीव धर्म प्राप्त करने का पात्र भी नही कहा जा सकता है ।
प्रश्न ३ – 'लोक दृष्टि का विचक्षणपना' को स्पष्ट कीजिए ? उत्तर - लोक दृष्टि का विचक्षणपना अर्थात् लौकिक चतुराई । आत्म दृष्टि का नही, ज्ञान दृष्टि का नही, परन्तु लोकदृष्टि मे जो चतुर है उस चतुरपने को जो प्रत्यक्ष हलाहल जहर का प्याला न माने, तव तक वह धर्म प्राप्त करने का पात्र नहीं कहला सकता है ।
(अ) जैसे - एक आदमी पचास रुपया लेकर अफ्रीका गया । दस साल बाद घर आया । पचास लाख रुपया कमाकर लाया । उसे ससार चतुर कहता है । किन्तु जब तक ससार की चतुराई को हलाहल जहर का प्याला न जाने, तब तक धर्म पाने का पात्र नही है ।
(आ) जैसे - कुछ चोर चोरी करने जा रहे थे रास्ते मे कोई एक वढई मिला । उसने कहा, मुझे भी अपने साथ मिला लो । जब चोरी करने गये । तब बढई ने सोचा कि मैं ऐसा कार्य करूँ, जिससे यहाँ का मालिक मुझे याद रक्खे । उसने आरी से दरवाजे के कगरे काटने शुरू किये । बाद मे अन्दर जाने के लिए अपना पैर अन्दर रक्खा । तो अन्दर से मालिक ने उसके पैर खेचे और बाहर से चोरो ने खँचे विचारो जसे - बढई को ससार की चतुराई अपने आपको दुख दे गयी, उसी प्रकार शुभभाव के साथ एकत्व की चतुराई अनन्त ससार का कारण है । मैं जानता हूँ समझता हूँ यह शास्त्र अभिनिवेश आत्म कल्याण मे वडा भारी विघ्न करने वाला है |
प्रश्न ४ - गुरु की वाणी सुनी और कहे, यह तो मैं जानता हू ? उत्तर- गणधर चार ज्ञान का धारी जो एक अन्तर्मुहर्त मे १२ अग की रचना करता है । वह भी केवली के ज्ञान के सामने अपने ज्ञान को कुछ भी नही गिनता । भगवान की वाणी २४ घण्टो मे चार बार खिरती है । एक बार ६ घडी तक दिव्य देशना भव्य प्राणियो के