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________________ ( २०२ ) सुनने के अयोग्य है। (२) जैसे--जिसको सोने की पहिचान हो गई, वह १४ करेट आदि कह सकता है, उसी प्रकार जिसने अपने स्वभाव का आश्रय लेकर अनुभव-ज्ञान प्राप्त हो गया है, वह ही कह सकता है जिस समय जो होना होगा वही होगा, मिथ्यादृष्टि का ऐसा कहना असत्य है। (३) श्री समयसार के वध अधिकार मे आया है कि कोई जीव किसी अन्य जीव को मार जिला नही सकता और सुख-दुख नही दे सकता। ऐसा सुनकर अज्ञानी श्री समयसार की आड लेकर दूसरे जीवो को मारे और दुखी करे और कहे समयसार मे लिखा है कोई किसी को मार-जिला और सुखी-दुखी नही कर सकता। अरे भाई । ऐसी स्वच्छन्दता का सेवन करके तू मर जावेगा। समयसार कच्चा पारा है। यदि हजम हो जावे तो अमर वन जावेगा और यदि हजम न हुआ, फूट-फूटकर रोयेगा। इसलिए याद रख श्री समयसार का कथन जब तुझे कोई मारे, तुझे दुखी करे तब याद कर कि भगवान ने समयसार मे ऐसा कहा है । अज्ञानी जीव समयसार की आड मे मिथ्यात्व की पुष्टि करता है। (४) जैसे एक आदमी ने "वुलट प्रफ कोट" अर्थात जिस कोट मे गोली ना लगे, ऐसा कोट तैयार किया। वह फौज के कप्तान के पास गया कि आप "वुलट प्रफ कोट" का आर्डर दो। उसने कहा, ठीक है आप इसे पहिनो।' कप्तान अन्दर जाकर पिस्तौल लाया, तो देखा वह आदमी नौ दो ग्यारह हो गया; उसी प्रकार जिनवाणी मे जो कथन है वह अपने लिये ही है। ऐसा जानकर उन प्रकारों को पहिचानकर अपने में ऐसा दोष हो तो उसे दूर करके सम्यक श्रद्धानी होना, औरो के ही दोष देख-देखकर कपायी ना होना क्योकि अपना बुरा-भला अपने परिणामो से है। औरो को रुचिवान देखे, तो कुछ उपदेश देकर उनका भी भला करे। इसलिए अपने परिणाम सुधारने का उपाय करना योग्य है। सर्व प्रकार के मिथ्यात्वभाव
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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