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(७) असमान जातीय द्रव्यपर्याय मे एकत्वबुद्धि यह मिथ्यादर्शन है । [ गा० ६४ ]
प्रश्न ७०----- क्या मिथ्यादर्शन का स्वरूप श्री समयसार में भी आया है ?
उत्तर - ( १ ) द्रव्यकर्म, नोकर्म और भावकर्म मे एकत्वबुद्धि मिथ्यादर्शन है । [ गा० १६ ] ( २ ) जब तक यह आत्मा प्रकृति के निमित्त से उपजना - विनशना नहीं छोड़ता है तब तक अज्ञानी है, मिथ्यादृष्टि है, असयत है । [ गा० ३१४ ]
(३) (१) शुभाशुभभावो मे और ज्ञप्ति क्रिया मे (२) देव - नारकी और ज्ञायक आत्मा मे (३) ज्ञेय और ज्ञान मे एकत्वबुद्धि मिथ्यादर्शन है, एकत्व का ज्ञान मिथ्याज्ञान है और एकत्व का आचरण मिथ्याचारित्र है । [ गा० २७०]
(४) जो बहुत प्रकार के मुनिलिंगो मे अथवा गृहस्थी लिंगो में ममता करते हैं अर्थात् यह मानते हैं कि द्रव्यलिंग ही मोक्ष का दाता है उन्होने समयसार को नही जाना । उसे [ अ ] 'अनादिरुढ' [आ] 'व्यवहार मे मूढ' [इ] और 'निश्चय पर अनारूढ' कहा है यह सव मिथ्यात्व का प्रभाव है । [ गा० ४१३ ]
प्रश्न ७१ - छहढाला में अगृहीत मिय्यादर्शन किसे किसे कहा
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है ?
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उत्तर - ( १ ) आत्मा का स्वभाव ज्ञानदर्शन है । इसको भूलकर शरीर आदि की पर्याय को आत्मा की मान लेना, शरीर आश्रित उपवास आदि और उपदेशादि मे अपनेपने की बुद्धि होना यह अगृहीत मिथ्यादर्शन है । (२) शरीर की उत्पत्ति मे अपनी उत्पत्ति और शरीर के बिछुडने पर अपना मरण मानना अगृहीत मिथ्यादर्शन है । (३) - शुभाशुभ भाव प्रगट दु.ख के देने वाले हैं उन्हे सुखकर मानना अगृहीत मिथ्यादर्शन है । ( ४ ) शुभाशुभ भाव एक रूप ही है और बुरे ही है परन्तु अपने आप का अनुभव ना होने से अशुभ कर्मों के फल मे द्वेष