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असयमी, पापी, अन्यमत वाला तथा आत्मावलोकन मे हरामजादीपना आदि कहा है । (२) पचास्तिकाय गा० १६८ मे मिथ्यादृष्टि का शुभराग सर्व अनर्थ परम्पराओ रूप दुख का कारण कहा है। (३) रत्नकरण्ड श्रावकाचार गा० ३३ मे 'ससार' परिभ्रमण ही बताया है।
प्रश्न ५७-मोक्षमार्ग अर्थात् मोक्ष का रास्ता क्या है ?
उत्तर-अपने परम पारिणामिक ज्ञायक भगवान का आश्रय लेने से जो सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति वह मोक्ष का रास्ता है।
प्रश्न ५८-सम्यग्दर्शनादि मोक्षमार्ग है इनमे अनेकान्त क्या हैं ?
उत्तर-सम्यग्दर्शनादि ही मोक्षमार्ग है व्यवहार रत्नत्रयादि मोक्षमार्ग नहीं है यह अनेकान्त है ।
प्रश्न ५६-व्यवहार मोक्षमार्ग नहीं है. यह किस जीव की बात
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उत्तर-जिस जीव को सम्यग्दर्शनादि प्रगट हआ है उसको जो भूमिकानुसार राग होता है वह राग मोक्षमार्ग नहीं है तथा जो शुद्धि प्रगटी है वह हो मोक्षमार्ग है । मिथ्यादृष्टि के शुभभावो को तो व्यवहार भी नहीं कहा जाता है, क्योकि अनुपचार हुए विना उपचार का आरोप नही आता है।
प्रश्न ६०-द्रव्यपुण्य-पाप और शुभाशुभ भावो के सम्बन्ध में __ क्या-क्या जानना चाहिए ?
उत्तर-(१) परमार्थतः पुण्य-पाप (शुभाशुभभाव) आत्मा को अहितकर ही है और यह आत्मा की क्षणिक अशुद्ध अवस्था है। (२) सम्यग्दृष्टि के शुभ भावो से सवर-निर्जरा होती है यह मान्यता खोटी है, क्योकि शुभभाव चाहे ज्ञानी के हो या मिथ्यादृष्टि के हो, दोनो ही बध के कारण है [समयसार कलश टीका कलश ११०] (३) पुण्य छोडकर पापरूप प्रवर्तन ना करे और पुण्य को मोक्षमार्ग ना माने यह यह पुण्य-पाप को जानने का लाभ है। [मोक्षमार्ग प्रकाशक] (४) द्रव्य पुण्य-पाप आत्मा का हित अहित नही कर सकते हैं।