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( ७१ ) सवर-निर्जरा की प्राप्ति होकर क्रम से मोक्ष होता है और मात्र विशेष को देखने से आस्रव-वध की प्राप्ति होकर निगोद की प्राप्ति होती है।
प्रश्न २६-जो स्वभाव के आश्रय से पुरुषार्थ करता है उसका क्या
उत्तर-[१] पच परावर्तन का अभाव । [२] मिथ्यात्व-अविरति आदि ससार के पाँच कारणो का अभाव । [३] पचपरमेष्टियो मे उसकी गिनती होने लगती है। [४] पचमगति मोक्ष की प्राप्ति होती है। [५] पचम पारिणामिक भाव का महत्व आ जाता है। [६] आठ कर्मो का अभाव हो जाता है। [७] १४ गुणस्थान, १४ मार्गणा और १४ जीवसमास का अभाव होकर सिद्धदशा को प्राप्ति होना इस का फल है।
प्रश्न २७- अजीव की तयोगी-वियोगी पर्यायो का क्या-क्या नाम है और क्या-क्या परिभाषा है ?
उत्तर-द्रव्यआत्रवनवीन कर्मों का आना । द्रव्यवधनवीन कर्मो का स्वय स्वत वधना। द्रव्यसवर-कर्मों का आना स्वय स्वत रुक जाना । द्रव्य निर्जरा जड कर्म का अगत खिर जाना । द्रव्य मोक्ष-द्रव्य कर्मो का आत्म प्रदेशो से अत्यन्त अभाव होना।
प्रश्न २८-जीव और अजीव की पर्यायों मे कैसा-कता सम्बन्ध
उत्तर-निमित्त-नैमित्तिक सवध है। निमित्त-नैमित्तिक सवध परस्पर परतत्रता का सूचक नही है, परन्तु नैमित्तिक के साथ कौन निमित्तरूप पदार्थ है उसका वह ज्ञान कराता है, क्योकि जहाँ उपादान होता है, वहा निमित्त नियम से होता ही है ऐसा वस्तु स्वभाव है। बनारसीदास जी ने कहा है.---'उपादान निजगुण जहाँ, तहाँ निमित्त पर होय , भेदज्ञान प्रमाण विधि, विरला बूझे कोय ॥'
प्रश्न २६-जीव का प्रयोजन क्या है ? उत्तर--जिसके द्वारा सुख उत्पन्न हो और दुख का नाश हो उस