________________ ( 276 ) उत्तर-आत्मस्वभाव से प्रतिपक्षी स्वभाव को धारण करने वाले पुद्गल कार्मण स्कन्ध वर्गणाओ को कर्म कहते है / वे 8 हैं। 1 ज्ञानावरण, 2 दर्शनावरण, 3 वेदनीय, 4 मोहनीय, 5 आयु, 6 नाम, 7 गोत्र और 8. अन्तराय / प्रश्न २८६-उस कर्म के मूल भेव कितने हैं और क्यो ? उत्तर-उस कर्म के मूल 2 भेद है। 1 घाति कर्म, 2 अघाति कर्म। (1) जो अनुजीवी गुणो के घात मे निमित्तमात्र कारण हैंउन्हे घातिकर्म कहते हैं / (2) जो अनुजीवी गुणो के घात मे निमित्त नही है अथवा आत्मा को परवस्तु के सयोग मे निमित्तमात्र कारण हैं अथवा आत्मा के प्रतिजीवी गुणो के घात मे निमित्तमात्र कारण हैंउन्हे अघाति कर्म कहते हैं। घाति कर्म 4 है-१ ज्ञानावरण, 2 दर्शनावरण, 3 मोहनीय और 4 अन्तराय / शेष 4 अधाति हैं। प्रश्न २६०-इन कर्मों में उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम मे से कौन-कौन अवस्था होती हैं ? उत्तर--अघाति कर्मों मे दो ही अवस्था होती है। उदय और क्षय। चौदहवे तक इनका उदय रहता है और चौदहवे के अन्त मे अत्यन्त क्षय हो जाता है। ज्ञानावरण दर्शनावरण तथा अन्तराय की दो ही अवस्था होती हैं। क्षयोपशम और क्षय / बारहवें तक इनका क्षयोपशम है और बारहवे के अन्त मे क्षय है / मोहनीय मे चारो अवस्थाये होती है / उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम / प्रश्न २६१-किस गुण के तिरोभाव मे कौन कर्म निमित्त है ? उत्तर-ज्ञान गुण के तिरोभाव मे ज्ञानावरण निमित्त है / निमित्त मे ज्ञानावरण को स्वत दो अवस्था होती हैं—क्षय और क्षयोपशम / उपादान मे ज्ञान गुण मे स्वत. दो नैमित्तिक अवस्था होती है-क्षायिक और क्षायोपशमिक / इसलिए ज्ञानगुण मे दो भाव होते हैं अर्थात् ज्ञान गुण का पर्याय मे दो प्रकार का परिणमन होता है-क्षायिक परिणमन