________________ ( 263 ) __सहित हैं और केवली का ज्ञान निर्विकल्प अर्थात् उपयोग-सक्रान्ति रहित है / इस अपेक्षा केवलज्ञान निर्विकल्पक है। प्रश्न २४६-केवलज्ञान सविकल्पक किस प्रकार है ? उत्तर-[देखने वाले] दर्शन का निज लक्षण निर्विकल्प अर्थात् ज्ञेयाकार रहित है और ज्ञान का निज लक्षण सविकल्प अर्थात् ज्ञेयाकार सहित है। इस अपने लक्षण से प्रत्येक ज्ञान सविकल्पक है / केवल ज्ञान मे भी स्व पर याकारपना रहता है। अत वह भी सविकल्पक है। प्रश्न २४७-छद्मस्थ का ज्ञान सविकल्पक किस प्रकार है और निर्विकल्पक किस प्रकार है ? उत्तर-केवलज्ञान निविकल्प अर्थात् उपयोगसक्रान्ति रहित है और छमस्थ का ज्ञान सविकल्प अर्थात् उपयोगसक्रान्ति सहित है। इस अपेक्षा तो छद्मस्थो के चारो ज्ञान सविकल्पक हैं / दूसरे उपयोगात्मक स्वात्मानुभूति मे उपयोग क्योकि एक ही निज शुद्ध आत्मा मे रहता है और अर्थ से अर्थान्तर का परिवर्तन [ज्ञेय परिवर्तन नही करता-इस अपेक्षा स्वोपयोग के समय मे तो छद्मस्थो का ज्ञान निर्विकल्पक है और अन्य समय मे सविकल्पक है। प्रश्न २४८-ज्ञान सविकल्प है या नहीं ? उत्तर-ज्ञान एक तो अपने ज्ञेयाकार रूप लक्षण से सविकल्प है, दूसरे उपयोगसक्रान्ति लक्षण से सविकल्प है, तीसरे ज्ञेयपरिवर्तन से सविकल्प है। पर 'ज्ञान-राग रूप ही हो जाता हो' इस अपेक्षा सविकल्पक कभी नही है / प्रश्न २४६-सम्यग्दर्शन सविकल्पक है या नहीं ? उत्तर-सम्यग्दर्शन तो सम्यक्त्व गुण का निर्विकल्प [शुद्धभाव रूप] परिणमन है / चौथे से सिद्ध तक एक रूप है। वह किसी प्रकार भी सविकल्पक नही है क्योकि यह कभी रागरूप नहीं होता है। प्रश्न २५०-चारित्र सविकल्प है या नहीं ?