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________________ ( 261 ) अर्थ-केवल एक सम्यग्दर्शन से कितना ससार कट जाता है / गिने मिने भवो मे मोक्ष हो जाता है और तब तक नरक तिर्यञ्चनहीं होता। केवल देव और वहां से कुलीन सम्पत्तशाली मनुष्य होता है। यदि श्रेणिक की तरह मिथ्यात्व अवस्था मे सातवे नरक तक की भी आयु बाधली हो तो कटकर अधिक से अधिक पहले नरक की प्रथम पाथडे की 84 हजार वर्ष रह जाती है। यदि पशुगति या मनुष्यगति बाधली हो तो उत्तम भोगभूमि की हो जाती है और मोक्षमार्ग तो उसी समय से प्रारम्भ हो जाता है। वह वहाँ भी कर्मों की निर्जरा करके मोक्ष का ही पुरुषार्थ करता है। श्री कार्तिकेयानुप्रेक्षा मे कहा है रयणाण महारयणं सव्वजोयाण उत्तमं जोयं / सिद्धीण महारिद्धी सम्मत्तं सम्वसिद्धियरं // 32 // अर्थ-सम्यक्त्व है सो रत्ननि विष तो महारत्न है / बहुरि सर्वयोग कहिये वस्तु की सिद्धि करने के उपाय मत्रध्यान आदिक तिनि मे उत्तम योग है जाते सम्यक्त्व से मोक्ष सधै है। बहुरि अणिमादिक ऋद्धि हैं तिनि मे वडी ऋद्धि है / वहुत कहा कहिये सर्व सिद्धि करने वाला यह सम्यक्त्व ही है। इसमे यह दिखाया है कि सम्यक्त्व से कोई बडी सम्पदा जगत् मे नही है। नोट-सम्यग्दर्शन का विशेप माहात्म्य जानने के लिये सोनगढ से प्रकाशित सम्यग्दर्शन नाम की पुस्तक का अभ्यास करे। सम्यग्दर्शन का माहात्म्य शब्द अगोचर है। यह सब निश्चय सम्यग्दर्शन की महिमा है / व्यवहार रूप राग की नही / वह तो बध करने वाला है। छठवें भाग का सार (1) सविकल्प निर्विकल्प चर्चा प्रश्न २४३--सम्यग्दर्शन दो प्रकार का है या नहीं? उत्तर-नही। आत्मा मे एक श्रद्धा गुण है / उसको एक विभाव
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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