________________ ( 257 ) आत्मा का प्रभाव बढाना और पवित्र मोक्षदायक जिनधर्म को दानतप-विद्या आदि का अतिशय प्रगट करके तन, मन, धन द्वारा (जेसी अपनी योग्यता हो) सर्व लोक में प्रकाशित करना सो प्रभावना है। सम्यग्दर्शन से लाभ (1) सम्यग्दर्शन से-आगामी कर्मों का आस्रव बन्ध रुक जाता (2) सम्यग्दर्शन से पहले बन्धे हुवे कर्मो की निर्जरा होतो है। (3) सम्यग्दर्शन से-ज्ञान, सम्यग्ज्ञान हो जाता है और चारित्र सम्यक-चारित्र हो जाता है। (4) सम्यग्दर्शन से—एकत्वबुद्धि की कलुषता आत्मा से दूर हो जाती है और शुद्धि की प्रगटता हो जाती है। (5) सम्यग्दर्शन से-दुख दूर होकर अतीन्द्रिय सुख प्रारम्भ हो जाता है। (6) सम्यग्दर्शन से-लब्धिरून स्वात्मानुभूति तो हर समय रहती है और कभी-कभी उपयोगात्मक स्वात्मानुभूति का भी आनन्द मिलता है। (7) सम्यग्दर्शन से-अनादिकालीन पर के कर्तृत्व, भोक्तृत्व का भाव समाप्त हो जाता है / पर के सग्रह को तृष्णा मिट जाती है। परिग्रहरूपी पिशाच से मुख मुड जाता है। उपयोग का बहाव पर से हट कर स्व की ओर होने लगता है। (8) सम्यग्दर्शन से-कर्मचेतना और कर्मफलचेतना के स्वामित्व का नाश होकर मात्र ज्ञान चेतना का स्वामी हो जाता है। ज्ञानमार्गानुचारी हो जाता है। (6) सम्यग्दर्शन से-परद्रव्यो का, अपने सयोग वियोग का, राग का, इन्द्रिय सुख दुख का, कर्मबन्ध का, नी तत्त्वो का, यहाँ तक