________________ ( 251 ) (46) 2. संवेग-निजधर्म तथा जिनधर्म के प्रति राग-वह सवेग है। (47) 3. निर्वेद-वैराग्य भाव वह निर्वेद है। (48) 4. अनुकम्पा-स्वदया-परदया वह अनुकम्पा है। (46) 5. आस्तिक्य-स्वरूप की तथा जिनवचनो की प्रतीति वह आस्तिक्य है, ये लक्षण अनुभवी के हैं। __ अब छह जैनसार लिखते है -- (50) 1 वंदना-परतीर्थ, परदेव और परचैत्य-उनकी वन्दना न करे। (51) 2 नमस्कार-उनकी पूजा या नमस्कार न करे / (52) 3. दान-उनको दान न करे। (53) 4. अनुप्रयाण-(उनके लिये) अपने खान-पान से अधिक न करे। (54) 5. आलाप-प्रणति सहित सभापण, उसको आलाप कहते है, वह उनके साथ न करे / (55) 6. सलाप-गुण-दोष सम्बन्धी पूंछना कि वारबार भक्ति करना सलाप है वह उनकी न करे / अब सम्यक्त्व के छ अभग कारण लिखते हैं। जो सम्यक्त्व के भग के कारण पाकर न डिगे उनको अभग कारण कहते हैं / उनके छ भेद हैं। (56 से 61)-1 राजा, 2 जनसमुदाय, 3. बलवान, 4 देव, 5 पितादिक बड़े जन और 6 माता / ये सम्यक्त्व के अभगपने मे छः भय हैं / उनको जानता रहे पर उनके भय से निजधर्म तथा जिनधर्म को न तजे। अब सम्यक्त्व के छ स्थान लिखते हैं - (62) 1. जीव है-आत्मा अनुभव सिद्ध है / चेतना मे चित्तलीन करे, जीव अस्ति रूप है वह केवल ज्ञान द्वारा प्रत्यक्ष है। (63) 2. नित्य है-द्रव्यार्थिक नय से नित्य है। .