________________ ( 233 ) प्रश्न २२०-कर्मचेतना का स्वरूप क्या है ? उत्तर-अपने को सर्वथा राग द्वेप मोह रूप ही अनुभव करना, ज्ञायक का रचमात्र अनुभव न होना कर्मचेतना है। जीव भेद विज्ञान के अभाव के कारण आत्मा के ज्ञायक स्वरूप को भूलकर सर्वथा पर पदार्थ को अपने रूप अथवा अपने को परपदार्थ रूप समझता है तो मोहभाव को उत्पत्ति होती है। जिसको इष्ट मानता है उस के प्रति राग की उत्पत्ति होती है, जिसको अनिष्ट मानता है, उसके प्रति द्वप की उत्पत्ति होती है। फिर सर्वथा राग द्वेष मोह का अनुभव करने लगता है। उसे आत्मा, मात्र राग द्वष मोह जितना ही अनुभव मे आता है। (975) प्रश्न २२१-कर्मफलचेतना का स्वरूप बताओ? उत्तर-अपने को सर्वथा सुख-दुख रूप ही अनुभव करना / ज्ञायक का रचमात्र अनुभव न होना कर्मफल चेतना है। जीव भेदविज्ञान के अभाव के कारण आत्मा के ज्ञायक स्वरूप को भूलकर इष्ट विषयो मे सुख की कल्पना करता है तथा अनिष्ट विषयो में दुख भाव से सर्वथा तन्मय होकर उसी को सवेदन करता है / उसे आत्मा, मात्र सुख-दुख जितना ही अनुभव मे आता है। (974) प्रश्न २२२-ज्ञानी को साधारण क्रियाओ से बघ क्यो नहीं होता? उत्तर-क्योकि वह कर्मचेतना और कर्मफल चेतना का स्वामी नहीं है / ज्ञानचेतना का स्वामी है। ज्ञानचेतना के स्वामियो को कर्म चेतना और कर्मफलचेतना से बन्ध नही होता अन्यथा मोक्ष ही न हो / (667 से 1000) प्रश्न २२३-ज्ञानी; अज्ञानी की परिभाषा क्या है ? उत्तर-जो अपने को सामान्यरूप सवेदन करे वह ज्ञानी तथा जो अपने को विशेष रूप सवेदन करे वह अज्ञानी / बाकी परलक्षी ज्ञान के