________________ ( 217 ) कारण है। विशेष को साधन बनाकर सामान्य की सिद्धि करना इसका फल है। (540 से 545) प्रश्न १४४-अनुपचरित असद्भत व्यवहार नय का लक्षण, कारण, फल बताओ? उत्तर-अबुद्धिपूर्वक विभाव भावो को जीव का कहना अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नय है / वैभाविक शक्ति का उपयोग दशा मे द्रव्य से अनन्यमय होना इसकी प्रवृत्ति मे कारण है। विभाव भाव मे हेय बुद्धि का होना इसका फल है। (546 से 548) प्रश्न १४५-उपचरित असद्भूत व्यवहार नय का लक्षण, कारण फल बताओ? उत्तर-बुद्धि पूर्वक विभाव भावो को जीव के कहना उपचरित असद्भूत व्यवहार नय है। इसमे पर निमित्त है यह इसका कारण है। अविनाभाव के कारण अबुद्धि पूर्वक भावो की सत्ता का परिज्ञान होता इसका फल है। (546 से 551) प्रश्न १४६-उपचरित सद्भूत व्यवहार नय का मर्म क्या है ? उत्तर--"ज्ञान पर को जानता है" ऐसा कहना अथवा तो ज्ञान मे राग ज्ञात होने से "राग का ज्ञान है" ऐसा कहना अथवा ज्ञाता स्वभाव के भानपूर्वक ज्ञानी "विकार को भी जानता है" ऐसा कहना उपचरित सद्भूत व्यवहार नय का कथन है। प्रश्न 147 अनुपचरित सद्भूत व्यवहार नय का मर्म क्या है ? उत्तर- ज्ञान और आत्मा इन्यादि गुण-गुणी के भेद से आत्मा को जानना वह अनुपचरित सद्भूत व्यवहार नय है। साधक को राग रहित ज्ञायक स्वभाव की दृष्टि हुई हो तथापि अभी पर्याय मे राग भी होता है / साधक स्वभाव की श्रद्धा मे राग का निषेध हुआ हो, तथापि, उसे गुण भेद के कारण चारित्र गूण की पर्याय मे अभी राग होता है। ऐसे गुण भेद से आत्मा को जाना वह अनुपचरित सद्भूत व्यवहार नय