________________ रूप नहीं दिखेगी। यदि आप विशेष रूप से देखना चाहते हो तो विशेप को स्व बना लीजिये। कहिये (1) वस्तु स्व से है तो आपको सारी वस्तु विशेष रूप नजर आयेगी। जीव रूप ही दृष्टिगत होगी। (2) वस्तु पर से नहीं है। सामान्य पक्ष उसी समय विल्कुल नजर न आयेगा / सत् रूप से नही दिखेगा। (3) दोनो धर्मो को क्रम से देखना हो तो अस्ति-नास्ति / (4) युगपत देखना हो तो अवक्तव्य। शेष तीन इनके योग से। ज्ञानी सदा विशेप को गौण करके सामान्य से देखते हैं / अज्ञानी सदा विशेप को देखता है वह वेचारा सामान्य को समझता ही नही। विशेप की दृष्टि हलकी पडे तो सामान्य पकड मे आये / ऐसा ग्रथकार का पेट उपर्युक्त चार श्लोको मे निहित (छुना हुआ) है। अनेकान्त के जानने का लाभ अब यह देखना है कि यह मदारी का तमाशा हे या कुछ इसमे सार वात भी है / भाई इसको कहते हैं 'स्याद्वाद-अनेकान्त' यही तो हमारे सिद्धात को भित्ती है। हमारे सरताज श्री अमृतचन्द्र सूरी ने श्री पुरुपार्थसिद्ध मे इसको जीवभूत या बीजभूत कहा है। श्री समयसार के परिशिष्ट मे इसके न जानने वाले को सीधा पशु शब्द से सम्बोधित किया है। यद्यपि आध्यात्मिक सन्त ऐसा कडा शब्द नही कहते पर अधिक करुणा बुद्धि से शिष्य को यह बतलाने के लिये कि यदि यह न समझा तो कुछ नही समझा-ऐसा कहा है। श्री प्रवचन सार तथा श्री समयसार के दूसरे कलश मे इसको मगलाचरण मे स्मरण किया है। इसका कारण क्या है ? इसका कारण हम आपको इस ग्रथ के प्रारम्भ के श्लोक न० 261-262-263 मे बतला चुके है कि वस्तु उपर्युक्त चार युगलो से गुथी हुई है। और द्रव्य क्षेत्र काल भाव हर प्रकार से गुथी हुई है। यह तो पुस्तक ही "वस्तु की अनेकान्तात्मक स्थिति" के नाम से आप के हाथ मे है। वह चीज जैसी है वैसा ही ता उसका ज्ञान होना चाहिये अन्यथा मिथ्या हो जायगा। अब देखिय इससे लाभ क्या है।