________________ (. 156 ) की प्रगट पर्याय मे तो ससार मोक्ष आदि विसदृशता है परन्तु उसके अलावा एकरूप, एक सदृश निरपेक्ष "कारण शुद्ध पर्याय" हमेशा पारिणामिक भाव से वर्तती है। वह सब प्रकार की उपाधि से रहित है और सभी निर्मल पर्याय प्रगट होने का कारण है। द्रव्य के साथ मे सदैव अभेद रूप वर्तती है। इस कारण शुद्ध पर्याय को 'परम पारिणामिक भाव की परिणति" कह करके, ऐसा बताया है कि जैसी त्रिकाल सामान्य वस्तु है बंसी ही विशेष भी सदृशपने वर्तती है। (8) इस कारण शुद्ध पर्याय का व्यक्तपने का भोगना होता नहीं है क्योकि भोगना कार्य तो पर्याय मे होता है। ससार मोक्ष दोनो पर्याये है। (8) जगत मे ससार पर्याय, साधक पर्याय वा सिद्धपर्याय सामान्यरूप से अनादिअनन्त है। वैसे यह कारण शुद्धपर्याय एक-एक जीव मे अनादि अनन्त सदृशरूप से है उसका विरह नही है। कारण शुद्ध पर्याय नई प्रगट नही होती है परन्तु कारण शुद्ध पर्याय को समझ करने वाले जीव को सम्यग्दर्शनादिक कार्य नया प्रगट होता है। प्रश्न ४२-कई विद्वान कहे जाने वाले केवलज्ञान को गुण कहते हैं, क्या यह उनका कहना सत्य है ? उत्तर-उनका कहना असत्य है क्योकि केवलज्ञान पर्याय है / प्रश्न ४३-केवलज्ञान पर्याय है ऐसा कहीं षट्खडागम मे आया उत्तर-षट् खडागम-जीवस्थान--चूल्लिका खड एक सम्पादक हीरालाल जी पुस्तक 6 पुस्तकाकार पृष्ठ 34 मे तथा शास्त्राकार पृष्ठ 17 मे लिखा है कि "केवलज्ञानमेव आत्मार्थावभासकमिति केचित् केवलदर्शनास्य भावमाचक्षते / तन्न पर्यायस्य केवलज्ञानस्य पर्यायाभावत सामर्थ्यद्वयाभावात्। भावे व अनवस्था न कैश्चिन्निवार्यते। तस्मादात्मा स्वपरावभासक इति निश्चेतव्यम् / तत्र स्वभावत केवल दर्शनम् / परावभास केवलज्ञानम् तथा. सति कथ केवलज्ञान दर्शनया.