________________ ( 150 ) है, (3) चारित्र की बात आवे तव भरतजी को याद करता है-यह सब स्वच्छन्दता की बात है। प्रश्न २५-~श्रद्धा किसको स्वीकार करती है और किसको स्वीकार नहीं करती ? उत्तर-श्रद्धा एकमात्र त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव को ही स्वीकारती है, परको, द्रव्यकर्मों को, विकारी भावो को, अपूर्ण और पूर्ण शुद्ध पर्याय को तथा गुण भेद को स्वीकार नही करती है अर्थात इनका आश्रय नही लेती है। साधक ज्ञानी को राग-द्वेष है ही नहीं, ऐसा जो कहा जाता है वह श्रद्धा की अपेक्षा जानना चाहिए। प्रश्न २६-सम्यग्दर्शन होने पर सम्यग्ज्ञान क्या जानता है ? उत्तर-जैसे-दौज का चन्द्रमा दौज के प्रकाश को बताता है, जितना प्रकाश बाकी है उसे बताता है, पूर्ण प्रकाश कितना है उसको बताता है और त्रिकाल पूर्ण प्रकाशमय चन्द्रमा कैसा होना चाहिए उसे भी बताता है; उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि का ज्ञान जितनी शुद्धि प्रगटी है उसे जानता है, जितनी अशुद्धि बाकी है उसे जानता है, शुद्धि की पूर्णता किस प्रकार की होती है उसे जानता है और त्रिकाली शुद्ध आत्मा जिसके आश्रय से शुद्धि आती है उसे भी जानता है / प्रश्न २७-चारित्र को अपेक्षा सम्यग्दष्टि क्या जानता है ? उत्तर-जितनी शुद्धि प्रगटी है वह मोक्षमार्गरूप है और जितनी अशुद्धि है वह सब बन्धरूप है, अल्पबन्ध का कारण है, ज्ञान का ज्ञेय है, हेय है। प्रश्न २८-चारों अनुयोगो का तात्पर्य क्या है, इसका दृष्टान्त देकर समझाओ? उत्तर-अरे भाई | चारो अनुयोगो की कथन शैली मे फेर होने पर भी सबका आशय एक है अर्थात वीतरागता की प्राप्ति कराना है। (1) प्रथमानुयोग कहता है-'ऐसा था' (2) चरणानुयोग कहता है -'उसे छोडो' (3) करणानुयोग कहता है-'ऐसा है तो ऐसा है