________________
निश्चयनय का कथन है-उसका निर्णय करके अर्थ करना वह नयार्थ है।
प्रश्न १०-मतार्थ क्या है ?
उत्तर-वस्तुस्वरूप से विपरीत ऐसे किस मत का (साख्यबौद्धादिक) का खण्डन करता है। और स्यावाद मत का मण्डन करता है-इस प्रकार शास्त्र का कथन समझना वह मतार्थ है ।
प्रश्न ११-आगमार्थ क्या है ?
उत्तर-सिद्धान्त अनुसार जो अर्थ प्रसिद्ध हो तदनुसार अर्थ करना वह आगमार्थ है।
प्रश्न १२-भावार्थ क्या है ?
उत्तर-शास्त्र कथन का तात्पर्य-साराश, हेय उपादेयरूप प्रयोजन क्या है ? उसे जो बतलाये वह भावार्थ है। जैसे-निरजन ज्ञानमयी निज परमात्म द्रव्य ही उपादेय है, इसके सिवाय निमित्त अथवा किसी भी प्रकार का राग उपादेय नही है। यह कथन का भावार्थ है।
प्रश्न १३-पदार्थो का स्वरूप सीदे-सादे शब्दो मे क्या है, जिनके श्रद्धान-ज्ञान से सम्पूर्ण दुःख का अभाव हो जाता है ?
उत्तर-"जीव अनन्त, पुद्गल अनन्तानन्त, धर्म-अधर्म-आकाश एक-एक और लोक प्रमाण असँख्यात काल द्रव्य है। प्रत्येक द्रव्य मे अनन्त-अनन्त गुण है। प्रत्येक द्रव्य के प्रत्येक गुण मे एक ही समय मे एक पर्याय का व्यय, एक पर्याय का उत्पाद और गुण ध्रौव्य रहता है। ऐसा प्रत्येक द्रव्य के प्रत्येक गुण मे हो चुका है, हो रहा है
और होता रहेगा।" इसके श्रद्धान-ज्ञान से सम्पूर्ण दु ख का अभाव जिनागम मे बताया है।
प्रश्न १४-किसके समागम मे रहकर तत्त्व का अभ्यास करना चाहिए और किसके, समागम मे रहकर तत्त्व का अभ्यास कभी नहीं करना चाहिए?