________________ ( 148 ) हुआ और खिलौना लेकर घर पहुंचा। उसके पिता ने पूछा, यह खिलोना कितने का है और कहाँ से लाया है ? उसने बता दिया। लडके का पिता उस दुकानदार के पास गया और दो सौ खिलोनो का आर्डर लिखा दिया। दुकानदार ने तुरन्त एक हजार का विल बनाकर, उसके हाथ मे दे दिया। उसने कहा, अभी-अभी तुमने हमारे लड़के को यह खिलीना दस पैसे का दिया है और हमसे पाँच काका यी मांगता है ? व्यापारी ने कहा, अरे भाई | उसके पास कुल जमा पूँजी दस पैसा ही थी, उसने सव जमापूंजी इस खिलाने के खरीदने मे लगा दी / तुम तो वेचने को ले जा रहे हो और तुम्हारे पास तो लाखो रुपया है, क्या तुम हमे सब रुपया दे दोगे ? उसी प्रकार वर्तमान मे पूज्य गुरुदेव कहते है कि जा जीव अपने मति-श्रुतज्ञान के सम्पूर्ण उघाड को अपने 'चैतन्य रत्नाकर की ओर लगा दे तो उसे तत्काल धर्म की प्राप्ति हो। परन्तु जो जीव अपने मति-श्रुतज्ञान के उखाड को घर के कार्यो मे, लौकिक पढाई मे, व्यापार धन्धे रूप इत्यादि अशुभभावो मे और व्रतशील-सयम-अणुव्रत-महाव्रतादि शुभभावो मे ही लगा देता है वह आत्मधर्म की प्राप्ति नही कर सकता। प्रश्न १६-निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर-अखण्डानन्द शुद्ध आत्मस्वभाव के लक्ष के वल से आंशिक शुद्धि की वृद्धि और अशुद्ध (शुभाशुभ इच्छारूप) अवस्था की ऑशिक हानि करना वह भाव निर्जरा है और उसका निमित्त पाकर जड कर्म का अशत खिर जाना वह द्रव्य निर्जरा है। प्रश्न १७-निर्जरा कितने प्रकार की है ? उत्तर-चार प्रकार की है -सकाम निर्जरा, अकाम निर्जरा, - सविपाक निर्जरा और अविपाक निर्जरा। प्रश्न १८-सकाम निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर-आत्मा शुद्ध चिदानन्द भगवान है, सत्य पुरुपार्थ पूर्वक उसके सन्मुख होकर शुद्धि की वृद्धि होना सकाम निर्जरा है /