________________ ( 145 ) उत्तर-(अ) जैसे-देहली जाते हुए रास्ते मे स्टेशन पडते हैं वह छोडने के लिए हैं। (आ) वादाम मे जो छिलका है और गन्ने में जो छिलका है वह फकने के लिए है, उसी प्रकार ज्ञानियो को जो व्यवहार बीच मे आता है वह फेकने के लिए है क्योकि ज्ञानी उसे हलाहल जहर मोक्ष का घातक मानते है इसलिए सम्पूर्ण व्यवहार अभूतार्थ है। प्रश्न १३---सिद्ध भगवान मे जितनो शक्तियाँ हैं उतनो ही प्रत्येक आत्मा मे भी है, परन्तु उनको पहिचान विना उनकी कोई कीमत नही है, ऐसा क्यों कहा जाता है ? उत्तर-भगवान की वाणी मे आया है कि प्रत्येक आत्मा सिद्ध के समान चैतन्यरत्नाकर है। प्रत्येक के पास अनन्तगुणो का भण्डार है। उसकी एक-एक निर्मल पर्याय की अपार कीमत है। दुनिया के वैभव के सामने उसकी बराबरी नही हो सकती, परन्तु अज्ञानी अपने को हीन मानकर पुण्य से भीख मांगता है। उसके पास कीमती गुणो का भण्डार उसकी पहिचान ना होने से चारो गतियो मे घूमता हुआ अनन्तबार निगोद चला गया। जैसे-कोई मनुष्य अपने को गरीव मानकर सेठ के पास भीख मांगने गया / सेठ उसके पास रहे हुए रत्न का प्रकाश देखकर आश्चर्यचकित हुआ और बोला, अरे भाई / तू भीख क्यो मांगता है, तू तो गरीव नही है। देख, तेरे पास जो यह रत्न है, यह महान कीमत का है। मेरे पास एक हजार सोने की मोहर है। तू उन सव मोहरो को ले ले और मुझे यह रत्न दे दे। वह गरीब मनुष्य आश्चर्य चकित हुआ कि मेरे पास इतना कीमती रत्न है, सुनकर आनन्दित हुआ। सेठ का उपकार मानकर बोला, सेठ जी यह रत्न तो हमारे घर मे वहुत समय से पडा था परन्तु मुझे इसकी खबर नहीं थी, इसी प्रकार वर्तमान मे सच्चा दिगम्वर धर्म मिलने पर भी अज्ञानी जीव सयोग और सयोगी भावो मे पागल होकर दौडा-दौड कर रहा है। महाभाग्य से वर्तमान मे पूज्य गुरुदेव का समागम मिला। उन्होने कहा, अरे जीव | तू क्यो सयोग और सयोगी भावो मे पागल हो रहा है।