________________ ( 137 ) प्रश्न २०१-चारित्रगुण के परिणमन में क्षायोपशमिक चारित्र कौन से गुणस्थान से कौन से गुणस्थान तक है ? उत्तर-चौथे से १०वे गुण स्थान तक क्षयोपशमिक चारित्र है यह नैमित्तिक है और चारित्र मोहनीय का क्षयोपशम निमित्त है। प्रश्न २०२---औपशमिक चारित्र में निमित्त-नैमित्तिक क्या है और कौन से गुणस्थान में होता है ? उत्तर-११वे गुणस्थान मे औपशमिक चारित्र प्रगट होता है यह नैमित्तिक है और चारित्र मोहनीय कर्म का उपशम निमित्त है। प्रश्न २०३-चारित्र गुण में क्षायिक परिणमन कब से कहाँ तक होता है तथा इसमें निमित्त-नैमित्तिक क्या है ? उत्तर-१२वे गुणस्थान से लेकर सिद्धदशा तक क्षायिक परिणमन नैमित्तिक है और चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय निमित्त है। प्रश्न २०४-चौथे गुणस्थान में तो शास्त्रो में असयमभाव बताया आपने क्षायोपशमिक चारित्र कैसे कह दिया ? उत्तर-तुम शास्त्रो के कथन का तात्पर्य नही समझते हो इसलिए ऐसा प्रश्न किया है। जैसे-पाँचवे गुणस्थान मे देशचारित्र और छठे गुणस्थान मे सकलचारित्र चारित्र नाम पाता है वैसा चारित्र न होने की अपेक्षा असयम कहा है / परन्तु चौथे गुणस्थान मे अनन्तानुवधी के अभावरूप स्वरूपाचरण चारित्र होता है। प्रश्न २०५-चौथे गुणस्थान में क्षायोपशमिक चारित्र में निमित्तनैमित्तिक क्या है ? उत्तर-स्वरूपाचरण चारित्र नैमित्तिक है और अनन्तानुबन्धी क्रोधादि का क्षयोपशम निमित्त है। प्रश्न २०६-कर्मों के साथ 'सबघवाला' से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-'सम्बन्धवाला' यह जीव का भाव है और द्रव्यकर्म यह कार्माणवर्गणा का कार्य है। दोनो मे निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध होने मे "सम्बन्धवाला" शब्द जोडा है /